शनिवार, 31 दिसंबर 2011

नौकरी की समस्या नहीं...

जनसंचार में आज नौकरी की समस्या नहीं है। इस क्षेत्र में आज अपार सम्भावना है। विद्यार्थी को आज अपने शिक्षा को विस्तार करने कि आवश्यकता हैं। यह वक्तव्य कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के कुलपति ड़ॉ सच्चिदानंद जोशी ने जनसंचार के प्रथम तथा तृतीय सेमेस्टर के विद्यार्थीयों को संबोधित करते हुए कहा। सर्वप्रथम कुलपति नें नये विद्यार्थियों का परिचय लेकर उनके शैक्षणिक पृष्टभूमि के बारे में जाना। अलग-अलग क्षेत्र के विद्यार्थियों को एक साथ देखकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने विद्यार्थियों को सुझाव दिया कि वें अपने अध्ययन पर अधिक समय दे साथ ही अपने आस-पास के वातावरण से भी कुछ सीखे। उन्होंने कहा कि संकल्पित होकर आगे बढ़े जिससे भविष्य के लिए मददगार साबित होगा। विद्यार्थियों को विभिन्न प्रकार के जॉब साइट कि जानकारी दी। इन्हीं उत्साहवर्धन बोतों के साथ उन्होंने विधार्थियों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया और उनके उज्जवल भविष्य की कामना की।

‘हिंसा किसी समस्या का हल नहीं होता‘ हिंसा और कानून पर परिचर्चा

कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यलाय के जनसंचार विभाग द्वारा देश में बढ़ रहीं जनहिंसा और उससे पड़ने वाले प्रभाव को देखते हुए मंगलवार को एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। ाकार्यकम में मुख्य वक्ताओं में विधायक कुलदीप जुनेजा, वरिष्ट पत्रकार प्रकाश होता , युवा राजनेता श्रीकुमार मेनन उपस्थित थे।
जनहिंसा और कानून पर बोलते हुए श्री जुनेजा ने कहा कि आज के दौर में लोग तत्काल परिणाम चाहते है, लोग ये मानते है कि देश राज्य में जो भी गलत हो रहा है उन सब के पिछे नेताओं का हाथ है। वर्तमान परिपेक्क्ष का उदाहरण देते हुए यह भी कहा कि कुछ लोगों को वहम हो गया है कि हम कानून को जेब में रखते है या नेता हमारे गुलाम है, और कानून का उलघंन करना अपनी शान समझते है जो काफी शर्मशार घटना है, लोगो को कानून और मर्यादा का पालन करना चाहिए जिससे समाज में मिशाल पेश हो सके। श्री होता ने जनहिंसा के आरंभ काल को श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत किया, और शासन व प्रशासन को दोष देने के बजाय लोगों को खुद कानून का पालन करना चाहिए बताया। आज कल लोगों के पास आक्रोश निकालने के लिए साधन नहीं है, पूर्व में लोग अपने गुस्सा निकालने के लिए फुटबालॅ, हॉकी आदि आउटडोर गेम का उपयोग करते थे, पर आज इस वयस्ता भरे समय में लोग अपना क्रोध , गुस्सा आम लोग या राह चलते लोगों पर उतार देतेे है या फीर बात को बतंगर बना देने है। साथ ही यह भी कहा कि अगर किसी मसले को शांती से निपटा लिया जाए तो जनहिंसा की आवश्कता नहीं होगी। श्री मेनन ने अपने उदबोधन में कहा कि जनहिंसा का कारण एक तो लोग खुद होते है और कुछ शासन प्रशासन की खामियों के कारण भी जनआक्रोश फूटता है। समय रहते इस मामले का स्थाई हल नहीं निकाला गया तो भािवष्य में इसके परिणाम काफी दुखद हो सकती है। कर्यक्रम की अध्यक्ष्ता कर रहें डॉ शाहिद अली ने बतायाकी लोग अगर गांधी के बताए हुए मार्ग को अपना ले तो इस प्रकार की समस्या सामने ही नहीं आएगी। साथ ही यह भी बताया कि लोग जरा सी बात को बढा-चढा कर पेश करते र्है। कही का गुस्सा कहीं निकालते है आम भाषा में कहा जाए तो किसी घठना को लेकर राह चलते लोग हाथ साफ कर लेते है। वक्ताओं के अलावा पीसीसी के सचिव संजय पाठक, समाज सेवा के क्षेत्र से जुडे विनोद पिल्लै इलेक्ट्रानिक्स विभाग के विभागाध्यक्ष नरेंद्र त्रिपाठी ने भी अपने-अपने विचार रखें। कार्यक्रम में विवि के सभी छात्र-छात्राएं सभी विभागों के शिक्षक उपस्थित थे। अतं में आभार प्रदर्शन राजेद्र मोहंती व संचालन अवधेश मिश्रा ने किया।

गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

हवा का रुख़ बदलने वाले लोग...

हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते,

वक़्त की शाख से लम्हे नहीं तोड़ा करते..

वंदना

वाकई कुछ लोगों के साथ रिश्ता ही ऐसा होता है कि उनके चले जाने के बाद भी उनसे रिश्ता टूटे नहीं टूटता. फि़ल्म और संगीत जगत की ऐसी ही कुछ हस्तियों को 2011 में लोगों ने नम आँखों से विदाई दी. कभी-कभी सोचकर थोड़ी हैरत होती है कि इन लोगों के साथ ज़ाती रिश्ता न होते हुए भी एक अटूट और रूहानी रिश्ता जुड़ जाता है. न जानते हुए भी लगता है कि ये शख़्स कुछ अपना सा है, जिनके हमेशा के लिए चले जाने पर वैसा ही दर्द होता है जितना किसी जानने वाले के जाने पर. शम्मी कपूर, सदाबहार देव आनंद और गज़़ल सम्राट जगजीत सिंह बहुत से लोगों के लिए ऐसी ही हस्तियाँ थीं. इनके चले जाने से जो खालीपन रह गया है उसे सैकड़ों सितारे मिल कर भी शायद न भर पाएँ. ये कलाकार नहीं नगीने थे. किसी ने ट्विटर पर इन्हें श्रद्वांजलि देते हुए सही कहा है- 'गॉड इज़ द रियल ज्वील थीफ़, ही स्टोल देव आनंद, शम्मी कपूर, जगजीत सिंह, एमएफ़ हुसैन.Ó यानी ऊपरवाले ने हमसे अनमोल नगीने चुरा लिए हैं.
अपने नियम ख़ुद गढ़े - इन हस्तियों के जाने से 20वीं सदी के एक स्वर्णिम युग से लोगों का नाता टूट गया है. आखऱि क्या वजह है कि इन लोगों की जगह भरना मुमकिन नहीं है. अपनी तमाम खूबियों और ख़ामियों को लिए ये कलाकार महज़ एक व्यक्ति नहीं बल्कि संस्था थे. इन्होंने अपने नियम ख़ुद गढ़े, अभिनय या गायन का अपना व्याकरण बनाया और लाखों-लाख दिलों पर राज किया. 1947 में जब आज़ाद भारत अपनी पहचान तलाश रहा था उसी दौरान 1948 में देव आनंद ने भी फि़ल्मी पर्दे पर दस्तक दी. देव आनंद ने अभिनय की अपनी शैली रची. अदायगी का वो अंदाज़, चेहरे की मुस्कुराहट, झुकी गर्दन, आँखों के एक कोने से वो प्यार भरी नजऱ, स्टाइलिश कपड़े....ये देव आनंद की पहचान थे और देखते ही देखते वो लोगों की दिल की धड़कन बन गए. वे दिलदार भी थे और दिलेर भी. लीक से हटकर विषयों को चुनने में वे कभी नहीं डरे. दिग्गज निर्देशकों और राज कपूर-दिलीप कुमार के साथ मिलकर देव आनंद ने हिंदी सिनेमा को वो मज़बूत आधार दिया जिसे आज बॉलीवुड कहा जाता है...हॉलीवुड वाले भी अब इस बॉलीवुड की सैर और 'क्रूज़Ó पर आते हैं...(भले ही उनकी नजऱ कला पर कम और यहाँ के बाज़ार पर ज़्यादा है). युवा पीढ़ी के लिए उनकी नई फि़ल्में प्रासंगिक नहीं रह गई थीं लेकिन उन्होंने इसकी परवाह कभी नहीं की. दूरदर्शिता वाले देव आनंद जैसे कलाकार ढूँढे से भी कम ही मिलते हैं...इसीलिए उनकी भरपाई मुश्किल है.
भारत के एल्विस प्रेस्ली - देव आनंद के बाद शम्मी कपूर जब आए तो भारत थोड़ा जवाँ हो चुका था. फि़ल्मों के आर्दशवादी नायक को शम्मी कपूर ने चुनौती दी. . उन्होंने उस समय के नायक की सूरत और सीरत बदल डाली. एल्विस प्रेस्ली जैसा अंदाज़, मदमस्त अदा, बग़ावती तेवर, आँखों में मस्ती और गीतों पर झूमने को ऐसा अंदाज़ कि उनके जादू से बचना मुश्किल हो जाए. शम्मी कपूर गेम चेंजर थे, लीक से हटकर चलने वाले. इसलिए उनकी भरपाई मुश्किल है. शम्मी कपूर और देव आनंद दोनों इसलिए याद रखे जाएँगे क्योंकि वे साहसी सितारे थे. इन्होंने अपने नियम ख़ुद बनाए, ये किसी के नक़्शे क़दम पर नहीं चले और ऐसे निशां छोड़ गए कि कोई चाहकर भी इनके नक्शे क़दम पर नहीं चल पाएगा. ये लोग 50 और 60 के ऐसे दौर का हिस्सा हैं जिसके बारे में आज की पीढ़ी ने किस्से ही सुने हैं. ये किस्से-कहानियाँ इन सितारों की आभा में और भी चार चाँद लगा देती हैं.
आवाज़ से जग जीता - देव और शम्मी कपूर की कामयाबी में एक समान धारा है और वो है इनकी फि़ल्मों का ख़ूबसूरत गीत-संगीत. गज़़ल गायक जगजीत सिंह शम्मी कपूर और देव आनंद के दौर के तो नहीं थे लेकिन उन्होंने भी अपने संगीत के ज़रिए लाखों लोगों के दिलों को वैसे ही छुआ जैसे शम्मी-देव ने अपने अभिनय से. इन दोनों फि़ल्मी सितारों की तरह जगजीत सिंह ने भी अपने नियम क़ायदों पर काम किया. रूमानियत, मासूमियत, मायूसी, इंतज़ार, प्यार..हमारे दिलों की कही-अनकही बातों को अपनी गज़़लों में पिरोया. ऐसा लगता था कि हमारे दिल का दर्द उनकी ज़बा से बयाँ हो रहा हो. उनकी हर गज़़ल अपनी लगती थी. आलोचना के बावजूद गज़़ल को संभ्रात लोगों के दायरे से निकालकर आमजन तक पहुँचाकर जगजीत सिंह ने वो काम किया जो पहले शायद ही किसी ने किया हो. किया भी तो इतनी मकबूलियत नहीं मिली.

जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया,

उम्र भर दोहराऊँगा ऐसी कहानी दे गय

चले जाने के बाद भी वो ऐसी गज़़लें पीछे छोड़ गए हैं जिन्हें दोहराकर हम आज भी दिल के एहसासों को बयां कर सकते हैं.
कितने अजीब रिश्ते हैं यहाँ के....
दुनिया को अलविदा कह चुके इन सब लोगों की बात करते-करते दिमाग़ में फिर वही सवाल आ रहा है जिसकी बात शुरु में की थी. क्यों इन हस्तियों के चले जाने के बाद निजी स्तर पर ऐसा खालीपन महसूस होता है मानो कोई अपना चला गया हो. दरअसल हम इन सितारों या कहें कि सितारों की छवि अपने दिलों में लेकर बड़े होते हैं. बचपन और जवानी के कितने ही किस्से इनसे जुड़े होते हैं. जो सपने ये पर्दे पर दिखाते हैं उम्र के किसी न किसी दौर में हम भी इन्हीं रूमानी सपनों को जीते हैं. जो गीत या गज़़ल ये सितारे गाते हैं उनके अल्फ़ाज़ हमें अपनी ही कहानी कहते हुए नजऱ आते हैं. फिर जीवन की आपाधापी में उम्र के साथ शायद इन्हें भूल भी जाते हैं.लेकिन मौत जब इन हरदिल अज़ीज़ सितारों को छीन ले जाती है तो मन में इनकी और इनसे जुड़ी निजी यादें फिर ताज़ा हो जाती हैं....अपनेपन का यही रिश्ता मन में खालीपन छोड़ जाता है. इनके चले जाने पर एहसास होता है कि क्यों कोई दूसरा शम्मी कपूर या देव आनंद या जगजीत सिंह नहीं हो सकता. हवा को भी रुख़ दिखाने वाली ये दिग्गज हस्तियाँ न सिफऱ् कला के मज़बूत स्तंभ हैं बल्कि हमारी सामूहिक स्मृतियों का अहम हिस्सा भी हैं. इनका जाना हमें भी कुछ देर के लिए अपने अतीत में ले जाता है- वो सपने जो पूरे हो गए और वो जो अधूरे रह गए. इनके जाने पर मन में कुछ ऐसा ही ख़्याल आता है......

'तुम चले जाओगो तो सोचेंगे

हमने क्या खोया हमने क्या पाया,

इप्टा की समीक्षा में कई अहम मसले पर हुई चर्चा

भारतीय जन नाट्य संघ(इप्टा) के दूसरे दिन मंगलवार को वक्ताओं ने प्रस्तुत किए अपने विचार
शेखर झा
भारतीय जन नाट्य संघ(इप्टा) के १३वें राष्ट्रीय सांस्कृतिक सम्मेलन पर सेक्टर-1 स्थित नेहरू सांस्कृतिक भवन के शरीफ अहमद मुक्ताकाश मंच पर वक्ताओं ने इप्टा को लेकर समीक्षा की। समीक्षा में विभिन्न प्रदेश के कलाकार उपस्थित थे। कार्यक्रम को इप्टा के संदर्भ में चर्चा करने के लिए वक्ताओं को कई भागों में बांट गया। कोई रंगमंच का समय से मुड़भेड़ को लेकर, तो कोई फिल्म एंड मीडिया के संदर्भ पर चर्चा कर रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता रमेश राजहंस ने की। इप्टा की पहली समीक्षा बैठक में नाट्य निदेशक प्रसन्ना, पटना इप्टा से जावेद अखतर, लखनऊ

इप्टा से राकेश कुमार, जुगल किशोर उपस्थित थे। वहीं दूसरी समीक्षा बैठक में आंध्र प्रदेश से के प्रताप रेड्डी, इंदौरा इप्टा से विनित कुमार, बिहार इप्टा से संजय सिन्हा शामिल थे। बैठक में सभी ने अपने अपने विचार व्यक्त किए। इस दौरान लोगों ने वक्ताओं से प्रश्न भी किए, जिसका वक्ताओं ने उत्तर भी दिया।
गांव में करना चाहिए नाटक - बैठक के दौरान नाट्य निदेशक प्रसन्ना ने कहा कि अभी भी गांव के लोग नाटक के भूखें हैं। कई साल हो जाते हैं, उनको नाटक देखने का अवसर नहीं मिल पाता। गांव में नाटक करने से लोगों की जिज्ञासा तो शांत होती है, साथ ही कलाकारों को भी गांव के लोगों से कुछ नया सीखने को मिलता है। वहीं जावेद अख्तर ने कहा कि नाटक प्रस्तुत करने के लिए कोई जगह तय नहीं की जाती है। घर के छत से लेकर अन्य जगहों पर नाटक प्रस्तुत की जा सकती है। उन्होंने खास कर बच्चों को केंद्रित करते हुए कहा कि रंगकर्मियों को बाल कलाकारों के साथ परफोरमेंस करना चाहिए। बाल कलाकार से बड़े-बड़े रंगकर्मियों को कुछ नया जानने का मौका मिलता है।
खुद का हो नेटवर्क - कार्यक्रम के दूसरे सत्र में वक्ताओं ने फिल्म और मीडिया विषय पर चर्चा की। इस बैठक में वक्ताओं ने माना कि इप्टा का खुद का नेटवर्क होना चाहिए, क्योंकि ये बड़ा थिएटर एसोसिएशन है। प्रताप रेड्डी ने कहा कि इप्टा के खुद का चैनल, वेबसाइट, स्नेह क्लब होने से काफी असर देखने को मिलेगा। वहीं संजय सिन्हा ने कहा कि समय-समय पर फिल्म मैकिंग पर वर्कशॉप होनी चाहिए। जिससे कलाकारों को अभिनय प्रस्तुत करने के साथ अपने अभिनय को क्रिएटिव करना भी आ जाएगा।

अभिनय किसी परिचय का मोहताज नहीं

बिहार इप्टा के कार्यकारी अध्यक्ष सीताराम सेन से शेखर झा की खास बातचीत :-
अभिनय को न ही कोई खरीद पाया है और न कभी खरीद पाएगा। वैसे भी अभिनय किसी परिचय का मोहताज नहीं होता है। ऐसा मानना बिहार इप्टा के कार्यकारी अध्यक्ष सीताराम सेन का है। वे इप्टा से १९७० से जुड़े हुए हैं। जब भारतीय जन नाट्य संघ(इप्टा) का बिहार में पुनर्गठन हुआ था। शेखर झा से चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि बॉलीवुड में अब वह दौर खत्म हो चुका है, जब अभिनेता अपने अभिनय को लेकर पूरे देश के लोगों के जूवां पर छाए रहते थे। अभी जितने भी नए कलाकारों का प्रवेश हुआ है, उसमें से बहुत कम ही कलाकारों को अभिनय की
जानकारी है। बॉलीवुड में जितने भी पुराने कलाकारों का नाम जाना जाता है, वह सिर्फ और सिर्फ उनके अभिनय को लेकर ही लोग जानते हैं। सेन अपनी आंखों से भले देख नहीं सकते हैं, लेकिन किसी को कोई आभास तक नहीं होता है, कि वे देख नहीं सकते। उन्हें रंगकर्मी के साथ अच्छे गायक के नाम से देश में जाना जाता है। उनके द्वारा गाए गए गीतों को अधिकतर लोग पसंद करते हैं। सेन ने इप्टा के लिए लोकगीत, जनगीत, ट्रेडिशन सॉग व अन्य गाने गाए हैं। सेन का कहना है कि बात बॉलीवुड की करें, तो अभिनेता अपने अभिनय को बेचते हैं। नए कलाकार हर समय लोगों के जूवां पर छाए रहने के लिए क्या से क्या नहीं करते। बॉलीवुड के जितने भी पुराने कलाकर थे, वे अपने अच्छे अभिनय से लोगों में छाए रहते थे।
सरकार से कोई मदद नहीं - इप्टा दुनिया का सबसे बड़ा थिएटर एसोसिएशन है। जिसमें हरके कलाकारों को अभिनय के बारे में जानकारी दी जाती है, लेकिन सरकार की ओर से कोई मदद नहीं की जाती है। सेन ने कहा कि यंगस्टर्स को कला के क्षेत्र में आगे बढऩे के लिए सरकार की ओर से न तो कोई मदद मिलती है और न कोई योजना शुरू है।
मनाते हैं बापू की जयंती - पूरे देश में ३० जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि मनाई जाती है। इससे भला इप्टा के कलाकार कैसे दूर रह सकते हैं। सीताराम ने बताया कि इप्टा के कलाकार पिछले कई सालों से गांधी मैदान पटना में एक जगह जुटकर 'हे राम बापू को बिहारीजन का सलाम, कार्यक्रम आयोजित करते हैं। इसमें देश के बड़े नेताओं से लेकर प्रसिद्ध अभिनेता भी शामिल होने आते हैं।

कई प्रांतों की संस्कृति की झलक दिखी रैली में

इप्टा के सचिव जितेन्द्र रघवंशी ने हरी झंडी दिखाकर रैली को किया रवाना, चौक-चौराहों पर हुआ स्वागत, पंथी नृत्य से रैली की शुरुआत
शेखर झा
भारतीय जन नाट्य संघ(इप्टा) के १३वां राष्ट्रीय महोत्सव से आम जनता को रूबरू कराने के लिए कलाकारों ने रैली निकाली। रैली में विभिन्न प्रदेशों से आए कलाकारों ने अपने-अपने प्रदेश के नृत्यों की प्रस्तुत दी। रैली को शाम ५ बजे आकाशगंगा परिसर से इप्टा के सचिव जितेन्द्र रघवंशी ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। रैली में सबसे आगे छत्तीसगढ़ इप्टा के लिटिल कलाकार थे, उसके बाद बिहार इप्टा, आंध्रप्रदेश प्रजा नाट्य मंडली, झाडखण्ड इप्टा, दिल्ली इप्टा, पंजाब इप्टा, राजस्थान इप्टा, उत्तर प्रदेश इप्टा व अन्य प्रदेशों से आए इप्टा के कलाकारों ने हिस्सा लिया। रैली के दौरान कोई अपने प्रदेश की संस्कृति को दर्शा रहे थे, तो कोई देश के भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ हल्ला बोल रहे थे। इस दौरान लोगों ने भी विभिन्न प्रदेशों के नृत्य का आनंद उठाया। रैली में अभिनेता अंजन श्रीवास्तव, प्रसन्ना, राजेन्द्र गुप्ता के अलावा इप्टा के अन्य प्रांतों के अध्यक्ष शामिल थे।
यहां से होकर गुजरे - रैली की शुरुआत आकाशगंगा परिसर से हुई। रैली जो जेपी चौक, २५मिलियन चौक, सेक्टर-2 चौक, सेक्टर-1 से होते हुए सांस्कृतिक भवन पहुंची। रैली के दौरान कई जगह अलग-अलग प्रदेश के कलाकारों ने अपने प्रदेश की नृत्य की प्रस्तुत दी। साथ ही फूलों की माला पहनाकर स्वागत किया।
विभिन्न प्रदेशों की नृत्य भी - छत्तीसगढ़ की पंथी नृत्य से रैली प्रारंभ हुई। उसके बाद आंध्रप्रदेश प्रजा नाट्य मंडली के कलाकारों ने पल्ले सुकूलू नृत्य, बिहार इप्टा के कलाकरों ने जोगीरा नृत्य, पंजाब इप्टा के कलाकारों ने भांगड़ा व गिद्धा नृत्य, आजमगढ़(उ.प्र.) के कलाकारों ने धोबिया नृत्य, आगरा इप्टा के कलाकारों ने इनकलाब के नारे लगाएं।
भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ हल्ला बोला - समाजसेवी अन्ना हजारे ने देश के भ्रष्ट नेताओं, अधिकारियों व अन्य लोगों के खिलाफ हल्ला बोल दिया है। रैली में शामिल होने के लिए राजस्थान से आए इप्टा के कलाकारों ने अपने प्रदेश की संस्कृति से लोगों को तो रूबरू किया ही, लेकिन भ्रष्ट लोगों के खिलाफ हल्ला भी बोला। कलाकरों का कहना था कि यह सिर्फ अन्ना की लड़ाई नहीं है, बल्कि पूरे देश के आम जनता की लड़ाई है।

इप्टा के राष्ट्रीय महाकुंभ का हुआ अगाज

भारतीय जननाट्य संघ(इप्टा) के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट रणवीर सिंह ने झंडारोहण कर किया तीन दिवसीय महोत्सव का उद्घाटन
शेखर झा
भारतीय जननाट्य संघ(इप्टा) का सोमवार को सेक्टर-1 स्थित नेहरू सांस्कृतिक भवन के शरीफ अहमद मुक्ताकाशी रंगमंच पर १३वीं राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सव का उद्घाटन हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत में इप्टा के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट रणवीर सिंह ने झंडारोहण करके किया। कार्यक्रम में प्रसिद्ध नाट्य निर्देशक प्रसन्ना, अभिनेता अंजन श्रीवास्तव, अशोक भौमिक, रमेश राजहंस, राजेन्द्र गुप्ता, विनोद शुक्ल व विभिन्न प्रदेशों से आए रंगाकर्मियों की बड़ी संख्या में उपस्थिति रही। महोत्सव के शुरुआत में छत्तीसगढ़ के लिटिल इप्टा और बिहार इप्टा के कलाकारों ने जनगीत प्रस्तुत किया। इस दौरान श्रोताओं ने उनका तालियों से साथ स्वागत किया। झंडारोहण के बाद रंगकर्मियों ने मार्च ऑन, मार्च ऑन, आईपीटीएल ऑन बोलकर कार्यक्रम की शुरुआत की। कार्यक्रम के दौरान सीनियर वाइस प्रेसिडेंट सिंह ने कहा कि इप्टा पूरी दुनिया का सबसे बड़ा थियेटर ऐसोशिएशन है। इतना बड़ा न तो थियेटर है और न आने वाले दिनों में होगा। इप्टा के झंडा के पास खड़े होने से गर्व होता है। उन्होंने विभिन्न प्रदेशों से आए कलाकारों को मिलकर काम करने की सलाह दी, साथ ही उन्होंने कलाकारों से अपने मक्सद हो हमेशा याद करके आगे बढऩे को कहा। प्रसिद्ध नाट्य निर्देशक प्रसन्ना ने कलाकारों को अपने अभिनय से रूबरू कराते हुए कहा कि कलाकार किसी परिचय का महोताज नहीं होता है। वे अपने अभिनय से हर मुकाम को हासिल कर सकता है।
किया शरीफ को याद - उद्याटन सत्र के दौरान छत्तीसगढ़ के कलाकार शरीफ अहमद को सभी ने याद किया। पिछले महीने उनकी एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी। छत्तीसगढ़ इप्टा के कई कलाकारों के आंखों से आंसू छलक रहे थे। कलाकार मणिमय मुखर्जी के आंसू थम नहीं रहे थे, क्योंकि कार्यक्रम को लेकर शरीफ पिछले एक महीने तक उनके साथ काम किया और कार्यक्रम में उनकी कमी महसूस हो रही है।
किया दो मिनट का मौन धारण- देश की रक्षा करने के लिए अपनी जान की आहूति देने वाले जावनों को विभिन्न प्रदेशों से आए कलाकारों ने कार्यक्रम में दो मिनट मौन रखकर श्रृद्धांजली अर्पित किया।