गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

हवा का रुख़ बदलने वाले लोग...

हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते,

वक़्त की शाख से लम्हे नहीं तोड़ा करते..

वंदना

वाकई कुछ लोगों के साथ रिश्ता ही ऐसा होता है कि उनके चले जाने के बाद भी उनसे रिश्ता टूटे नहीं टूटता. फि़ल्म और संगीत जगत की ऐसी ही कुछ हस्तियों को 2011 में लोगों ने नम आँखों से विदाई दी. कभी-कभी सोचकर थोड़ी हैरत होती है कि इन लोगों के साथ ज़ाती रिश्ता न होते हुए भी एक अटूट और रूहानी रिश्ता जुड़ जाता है. न जानते हुए भी लगता है कि ये शख़्स कुछ अपना सा है, जिनके हमेशा के लिए चले जाने पर वैसा ही दर्द होता है जितना किसी जानने वाले के जाने पर. शम्मी कपूर, सदाबहार देव आनंद और गज़़ल सम्राट जगजीत सिंह बहुत से लोगों के लिए ऐसी ही हस्तियाँ थीं. इनके चले जाने से जो खालीपन रह गया है उसे सैकड़ों सितारे मिल कर भी शायद न भर पाएँ. ये कलाकार नहीं नगीने थे. किसी ने ट्विटर पर इन्हें श्रद्वांजलि देते हुए सही कहा है- 'गॉड इज़ द रियल ज्वील थीफ़, ही स्टोल देव आनंद, शम्मी कपूर, जगजीत सिंह, एमएफ़ हुसैन.Ó यानी ऊपरवाले ने हमसे अनमोल नगीने चुरा लिए हैं.
अपने नियम ख़ुद गढ़े - इन हस्तियों के जाने से 20वीं सदी के एक स्वर्णिम युग से लोगों का नाता टूट गया है. आखऱि क्या वजह है कि इन लोगों की जगह भरना मुमकिन नहीं है. अपनी तमाम खूबियों और ख़ामियों को लिए ये कलाकार महज़ एक व्यक्ति नहीं बल्कि संस्था थे. इन्होंने अपने नियम ख़ुद गढ़े, अभिनय या गायन का अपना व्याकरण बनाया और लाखों-लाख दिलों पर राज किया. 1947 में जब आज़ाद भारत अपनी पहचान तलाश रहा था उसी दौरान 1948 में देव आनंद ने भी फि़ल्मी पर्दे पर दस्तक दी. देव आनंद ने अभिनय की अपनी शैली रची. अदायगी का वो अंदाज़, चेहरे की मुस्कुराहट, झुकी गर्दन, आँखों के एक कोने से वो प्यार भरी नजऱ, स्टाइलिश कपड़े....ये देव आनंद की पहचान थे और देखते ही देखते वो लोगों की दिल की धड़कन बन गए. वे दिलदार भी थे और दिलेर भी. लीक से हटकर विषयों को चुनने में वे कभी नहीं डरे. दिग्गज निर्देशकों और राज कपूर-दिलीप कुमार के साथ मिलकर देव आनंद ने हिंदी सिनेमा को वो मज़बूत आधार दिया जिसे आज बॉलीवुड कहा जाता है...हॉलीवुड वाले भी अब इस बॉलीवुड की सैर और 'क्रूज़Ó पर आते हैं...(भले ही उनकी नजऱ कला पर कम और यहाँ के बाज़ार पर ज़्यादा है). युवा पीढ़ी के लिए उनकी नई फि़ल्में प्रासंगिक नहीं रह गई थीं लेकिन उन्होंने इसकी परवाह कभी नहीं की. दूरदर्शिता वाले देव आनंद जैसे कलाकार ढूँढे से भी कम ही मिलते हैं...इसीलिए उनकी भरपाई मुश्किल है.
भारत के एल्विस प्रेस्ली - देव आनंद के बाद शम्मी कपूर जब आए तो भारत थोड़ा जवाँ हो चुका था. फि़ल्मों के आर्दशवादी नायक को शम्मी कपूर ने चुनौती दी. . उन्होंने उस समय के नायक की सूरत और सीरत बदल डाली. एल्विस प्रेस्ली जैसा अंदाज़, मदमस्त अदा, बग़ावती तेवर, आँखों में मस्ती और गीतों पर झूमने को ऐसा अंदाज़ कि उनके जादू से बचना मुश्किल हो जाए. शम्मी कपूर गेम चेंजर थे, लीक से हटकर चलने वाले. इसलिए उनकी भरपाई मुश्किल है. शम्मी कपूर और देव आनंद दोनों इसलिए याद रखे जाएँगे क्योंकि वे साहसी सितारे थे. इन्होंने अपने नियम ख़ुद बनाए, ये किसी के नक़्शे क़दम पर नहीं चले और ऐसे निशां छोड़ गए कि कोई चाहकर भी इनके नक्शे क़दम पर नहीं चल पाएगा. ये लोग 50 और 60 के ऐसे दौर का हिस्सा हैं जिसके बारे में आज की पीढ़ी ने किस्से ही सुने हैं. ये किस्से-कहानियाँ इन सितारों की आभा में और भी चार चाँद लगा देती हैं.
आवाज़ से जग जीता - देव और शम्मी कपूर की कामयाबी में एक समान धारा है और वो है इनकी फि़ल्मों का ख़ूबसूरत गीत-संगीत. गज़़ल गायक जगजीत सिंह शम्मी कपूर और देव आनंद के दौर के तो नहीं थे लेकिन उन्होंने भी अपने संगीत के ज़रिए लाखों लोगों के दिलों को वैसे ही छुआ जैसे शम्मी-देव ने अपने अभिनय से. इन दोनों फि़ल्मी सितारों की तरह जगजीत सिंह ने भी अपने नियम क़ायदों पर काम किया. रूमानियत, मासूमियत, मायूसी, इंतज़ार, प्यार..हमारे दिलों की कही-अनकही बातों को अपनी गज़़लों में पिरोया. ऐसा लगता था कि हमारे दिल का दर्द उनकी ज़बा से बयाँ हो रहा हो. उनकी हर गज़़ल अपनी लगती थी. आलोचना के बावजूद गज़़ल को संभ्रात लोगों के दायरे से निकालकर आमजन तक पहुँचाकर जगजीत सिंह ने वो काम किया जो पहले शायद ही किसी ने किया हो. किया भी तो इतनी मकबूलियत नहीं मिली.

जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया,

उम्र भर दोहराऊँगा ऐसी कहानी दे गय

चले जाने के बाद भी वो ऐसी गज़़लें पीछे छोड़ गए हैं जिन्हें दोहराकर हम आज भी दिल के एहसासों को बयां कर सकते हैं.
कितने अजीब रिश्ते हैं यहाँ के....
दुनिया को अलविदा कह चुके इन सब लोगों की बात करते-करते दिमाग़ में फिर वही सवाल आ रहा है जिसकी बात शुरु में की थी. क्यों इन हस्तियों के चले जाने के बाद निजी स्तर पर ऐसा खालीपन महसूस होता है मानो कोई अपना चला गया हो. दरअसल हम इन सितारों या कहें कि सितारों की छवि अपने दिलों में लेकर बड़े होते हैं. बचपन और जवानी के कितने ही किस्से इनसे जुड़े होते हैं. जो सपने ये पर्दे पर दिखाते हैं उम्र के किसी न किसी दौर में हम भी इन्हीं रूमानी सपनों को जीते हैं. जो गीत या गज़़ल ये सितारे गाते हैं उनके अल्फ़ाज़ हमें अपनी ही कहानी कहते हुए नजऱ आते हैं. फिर जीवन की आपाधापी में उम्र के साथ शायद इन्हें भूल भी जाते हैं.लेकिन मौत जब इन हरदिल अज़ीज़ सितारों को छीन ले जाती है तो मन में इनकी और इनसे जुड़ी निजी यादें फिर ताज़ा हो जाती हैं....अपनेपन का यही रिश्ता मन में खालीपन छोड़ जाता है. इनके चले जाने पर एहसास होता है कि क्यों कोई दूसरा शम्मी कपूर या देव आनंद या जगजीत सिंह नहीं हो सकता. हवा को भी रुख़ दिखाने वाली ये दिग्गज हस्तियाँ न सिफऱ् कला के मज़बूत स्तंभ हैं बल्कि हमारी सामूहिक स्मृतियों का अहम हिस्सा भी हैं. इनका जाना हमें भी कुछ देर के लिए अपने अतीत में ले जाता है- वो सपने जो पूरे हो गए और वो जो अधूरे रह गए. इनके जाने पर मन में कुछ ऐसा ही ख़्याल आता है......

'तुम चले जाओगो तो सोचेंगे

हमने क्या खोया हमने क्या पाया,

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