शुक्रवार, 11 मार्च 2011

हर दिन ‘विमेन्स डे’……

दुनिया भर में आठ मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रुप में मनाया जाता है. लेकिन बॉलीवुड के कई सितारे मानते हैं कि हर दिन महिलाओं का दिन होता है. निर्देशक और कोरियोग्राफ़र फ़राह ख़ान इस मौके पर महिलाओं को बधाई देने की ज़रूरत नहीं महसूस करतीं. वो कहती हैं, “मुझे इस दिन किसी महिला को ‘ऑल द बेस्ट’ कहने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि ‘विमेन आर द बेस्ट ‘ (महिलाएं सर्वश्रेष्ठ होती ही हैं). हर महिला अपने-आप में एक क़ामयाब औरत होती है चाहे वो घर में रह कर अपने घर ही क्यों न संभाल रही हों क्योंकि वो भी एक बहुत बड़ी उप्लब्धि है. फ़राह मानती है कि हर दिन महिला दिवस होता है क्योंकि आप एक भी दिन महिलाओं के बिना नहीं गुज़ार सकते, चाहे वो आप ख़ुद हों, आपकी मां हो, या फिर आपके घर की सफ़ाई करने वाली या आपका खाना बनाने वाली बाई. इसी तरह प्रीति ज़िंटा भी कहती हैं, “महिला दिवस सिर्फ़ एक ही दिन क्यों मनाया जाए, हर दिन हमारा दिन होता है.” औरतों के साथ छेड़खानी या फिर हिंसा के मामलों से निपटने के लिए प्रीति मानती हैं कि ऐसे पुलिस कंट्रोल रुम होने चाहिए जिनमें ज़्यादा महिला पुलिसकर्मी हों ताकि महिलाएं उनसे आसानी से बात कर सकें. इमरान ख़ान को भी एक ही दिन महिला दिवस मनाने का विचार समझ नहीं आता है. साढ़े आठ साल के रिश्ते के बाद हाल ही में शादी के बंधन में बंधे इमरान कहते हैं, “अपने अनुभव के आधार पर मैं तो यही कहूंगा कि हर दिन महिलाओं का दिन होता है. पुरुषों के लिए तो अभी तक कोई दिन ही नहीं बना.” सामाजिक मुद्दों से जुड़ी जानी-मानी अभिनेत्री शबाना आज़मी मानती हैं कि पिछले दिनों में महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा के मामले बढ़ते जा रहे हैं जो बहुत परेशानी की बात है. उनका कहना है, “ज़रूरत इस बात की है कि हम अपनी औरतों की इज़्ज़त करें और उन्हें वो हक़ दें जो आज़ादी दे सकती है.” अभिषेक बच्चन कहते हैं कि महिलाएं पुरुषों से बेहतर होती हैं और वो हमारे प्यार और सम्मान की हक़दार हैं. माधुरी दीक्षित का कहना है, “आज जब महिलाएं चांद पर भी पहुंच गई हैं तो यही कहूंगी कि आप कोई सपना देख सकते हैं और उसे साकार कर सकते हैं.” आमिर ख़ान को महिला सशक्तिकरण की बातें करना बेफ़कूफ़ी लगती है. वो कहते हैं, “इसमें कहने वाली बात क्या है, महिलाएं भी पुरुषों की ही तरह स्वतंत्र, मज़बूत और अपने-आप में संपूर्ण होती हैं. मैं सभी इंसानों की समानता में यक़ीन रखता हूं.” निर्दशक मेघना गुलज़ार की सोच इस बारे में थोड़ी अलग है. वो कहती हैं, “मैं महिला दिवस जैसे विचारों को नहीं मानती, मैं मानती हूं कि हर इंसान बराबर होता है. हमें किसी एक दिन की ज़रूरत नहीं है....हर इंसान को अपनी ज़िंदगी के हर दिन जश्न मनाना चाहिए.”

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