रविवार, 23 जनवरी 2011

बेजोड़ घड़ियों का बदकिस्मत निर्माता


प्राचीन काल में समुद्री यात्रा के दौरान सबसे ज्यादा कठिनाई दिशा को लेकर होती थी और इसी कोशिश में नाविक उन स्थानों पर भी पहुंच जाया करते थे, जहां जाने का उनका इरादा नहीं होता था। कई बार गलत दिशा की वजह से ही जहाज दुर्घटना का शिकार भी होते थे

एक बार ऐसी ही दुर्घटना सन 1707 में हुई, जब फ्रांसीसी सेना को करारी मात देने के बाद एडमिरल सर क्लाऊ डिस्ले शौकेल इंग्लैंड लौट रहे थे। दिशा का ठीक से पता न होने की वजह से उनके जहाज छोटे से द्वीप समूह से जा टकराये। इस दुर्घटना में चार जहाज वहीं डूब गए और 1600 लोग मारे गए। इतनी बड़ी हानि ने पूरे इंग्लैंड को हराकर रख दिया। इसके तुरंत बाद ब्रिटिश संसद ने एक बिल पारित किया। इसे नाम दिया गया-ह्यलांगीट्यूट एक्ट आॅफ 1714ह्ण। एक्ट के अनुसार, जो व्यक्ति लांगीट्यूड यानी देशांतर का सही पहचान करने वाला उपकरण बनाएगा, उसे 20,000 पाउंड (आज के लगभग दस करोड़ रुपये) इनाम दिये जाएंगे। दूसरी शताब्दी में एक वैज्ञानिक टॉल्मी ने धरती को क्षैतिज यानी दाएं से बाएं जाने वाली तथा ऊपर से नीचे आने वाली रेखाओं में बांटा। क्षैतिज रेखाओं को अक्षांश व लम्बवत रेखाओं को देशांतर रेखा कहा गया। यदि क्षैतिज व लम्बवत रेखाओं का सही ज्ञान हो तो नाविक समुद्र में अपनी स्थिति आसानी से पता लगा सकते हैं। अक्षांश का ज्ञान सूर्य या किसी ज्ञात तारे को ऊंचाई से आसानी से हो जाता है पर देशांतर रेखा का पता समय को देखकर होता है, किंतु उस समय यह संभव न था। पेंडुलम की लंबाई ताप के अनुसार बढ़ती धरती तो है ही, समुद्री यात्राओं में जहाज को जो हिचकोले लगते हैं, उनसे पेंडुलम एक निश्चित गति से चल ही नहीं पाता। आज पूरी दुनिया के ठीक बीचोंबीच दो रेखाएं हैं। एक है इक्वेटर यानी भूमध्य रेखा, जो पूरी पृथ्वी को ऊपरी व निचले हिस्से में बांटती है और दूसरी वह रेखा जो पृथ्वी को पूर्व व पश्चिम हिस्से में बांटती है। इंग्लैंड की रॉयल वेधशाला, ग्रीनविच नामक स्थान पर है, इसमें एक फाइबर आॅप्टिक प्रकाश किरण ही इस रेखा को दर्शाती है। इसी स्थान से दुनिया का निर्धारण होता है। इस रेखा से दाएं आने पर समय क्रमश: बढ़ता है व रेखा के बाएं जाने पर घटता है। अगर आज किसी को अपने देश के समय का ज्ञान हो तो समुद्री यात्रा के समय का अंतर निकाल वह आसानी से देशांतर रेखा पता लगा लेगा, पर काफी पहले पेंडुलम की घड़ियां समुद्री यात्रा के मामले में बेकार साबित हुई थीं। जब इंग्लैंड सरकार ने देशांतर रेखा की समस्या से निपटने के लिए भारी- भरकम इनाम रखा, तो इनाम के बारे में सुनकर एक घड़ी निर्माता ने ठान ली कि वह यह इनाम जरूर जीतेगा। इस घड़ी निर्माता का नाम था- जॉन हैरीसन। हैरीसन का जन्म 1693 में हुआ था व 1720 तक वह सुंदर व बेजोड़ घड़ियां बनाने के लिए मशहूर हो चुका था। 1722 में उसने लिंकनशायर मीनार के लिए जो घड़ी बनाई, वह आज भी सही समय बताती है। वह आम लोगों के लिए भी घड़ियां बनाता था। समुद्री हिचकोले में घड़ी न हिले और पेंडुलम के दोलन पर विपरीत असर न हो, इसके लिए जॉन ने ऐसी घड़ी बनाई जो बच्चों के खेल ह्यसी सॉह्ण यानी झूमा- झूमी जैसी थी। जैसे ही घड़ी पर एक ओर दबाव पड़ता, घड़ी स्वयं ही खुद को सीधा कर लेती। इस घड़ी में पीतल की छड़ें और तुलना लगी थी और डायलों की संख्या चार थी। एक डायल घंटे, दूसरा मिनट, तीसरा सेकेंड व चौथा महीने के दिनों को दर्शाता था। इसका वजन था- 35 किलो। जांच के लिए इस घड़ी को जहाज पर रखकर लिस्बन तक रवाना किया गया। रास्ते में मौसम खराब होने की वजह से जहाज दूसरी दिशा में चला गया। वह स्थान घड़ी के अनुसार लिस्बन नहीं, लीर्जड होना चाहिए। बाद में हुई जांच में यह बात एकदम सही पायी गयी। 23 वर्ष बाद घड़ी को परखने के लिए लांगीट्यूड समिति के सदस्यों की फिर बैठक हुई। जॉन को लगा कि उसकी घड़ी में कुछ कमी है, इसलिए उसने सदस्यों से कहा कि वह घड़ी फिर बनाएगा। चार साल बाद 1741 में हैरीसन ने एच-2 घड़ी बनाई और वह इसे लेकर समिति के सदस्यों के पास गया। घड़ी काफी भारी थी व यह भार ही जॉन को खटक रहा था। जॉन ने सदस्यों से कहा कि अगर उसे समय दिया जाए, तो वह हल्की घड़ी तैयार कर लेगा। फिर उसने एच-3 नाम की घड़ी तैयार की, पर इसको बनाने में उसे 19 साल लग गये। यह घड़ी उसने अपने बेटे विलियम के साथ बनाई थी, जो दो फुट ऊंची व 27 किलो की थी। घड़ी का भार अब भी ज्यादा था, इसलिए जॉन ने 1759 तक एच-4 नाम की घड़ी बना डाली, जो मात्र 1.4 किलो की थी। घषर्ण समाप्त करने के लिए घड़ी के भीतर हीरे लगे थे। 1760 में जॉन हैरीसन की घड़ी समिति के सामने रखी गई व इसे जांच के लिए जहाज में रखकर जमैका भेजा गया। यात्रा में मात्र 5 सेकेंड की त्रुटि आयी। जॉन इनाम का दावेदार हो गया, पर एक व्यक्ति नेविल मास्केलोनो ने दावा किया कि चांद की दूरी नापकर देशांतर रेखा का पता लगाना उसने पहले ही खोज लिया है। जॉन को मात्र डेढ़ हजार पाउंड मिले, वह भी यह कहकर कि इस घड़ी से लोगों को लाभ मिलेगा। 1964 में जॉन एच-4 के परीक्षण के लिए दोबारा समुद्री यात्रा पर निकले। उनकी घड़ी ने इंग्लैंड के मापदंडों से तीन गुना बेहतर तरीके से देशांतर रेखा मापी, फिर भी उसे दस हजार पाउंड ही मिले। पूरे इनाम के लिए जॉन को एच-4 जैसी दो घड़ियां और बनानी थीं, ताकि पता चल सके कि इस तरह की घड़ियों को व्यापक तौर पर बनाया जा सकता है। पहली एच-4 घड़ी सरकार ने ले ली और जॉन को याद्दाश्त से ही घड़ियां बनानी पड़ीं। पहली घड़ी का नाम रखा गया एच- 5, अगली घड़ी एच-6 बनाते-बनाते जॉन की आयु 77 साल की हो गई और उसकी नजर कमजोर पड़ने लगी। जॉन के इन कष्टों को देख उनके पुत्र विलियम ने सम्राट जॉर्ज तृतीय को पूरा विवरण लिख भेजा। संसद ने सम्राट के कहने पर 8750 पाउंड जॉन को और दिए। एच 1, 2 व 3 आज भी रॉयल वेधशाला में रखी हैं व सही समय देती हैं। ये घड़ियां उस आदत की याद दिलाती हैं जो कभी हारा नहीं और बेहतर तकनीक के लिए दशकों तक काम करने की हिम्मत रखता था।

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