मंगलवार, 25 जनवरी 2011

नापाक दलीलों को वकालत का नाम मत दो















-कुमार जगदलवी
मो. 9300436513
क्या कहा तुमने
मिस्टर राम
श्रीमान सेन
राष्ट्र-राज्य के
विध्वंसकों के
समर्थक नहीं
पेशे से डाक्टर हैं?
सेन थैली में
नक्सलियों के मैसेज
लटकाए घूमने वाले
कुरियर नहीं
सेंट्रल जेल में बंद
सान्याल का इलाज
करने वाले डाक्टर हैं।
इसलिए वे विनायक हैं
तुम यही साबित करना
चाहते हो न राम?
क्या तुम्हें
यह पता नहीं कि
मिस्टर सेन, अरुंधति राय, मेधा पाटकर,
राजेंद्र सच्चर, सायल और अग्निवेश जैसों ने
ना सिर्फ मानवाधिकार
का अर्थ बदला है
बल्कि, अपने नाम के
हिज्जे तक बदल दिए हैं
तुम तो विनायक का अर्थ
जानते होगे राम?
या अपने नाम के समान
इसे भूल गए
कि राम अब
रावण के खिलाफ नहीं
आसुरी शक्तियों के
समर्थन में खड़ा है
विनायक का मतलब
दामोदर राव सावरकर नहीं
अंग्रेजी के ‘वी’ अक्षर से जुड़ा
नायक हो गया है,
‘वी’ - नायक यानी
विलेनों का नायक
एक ऐसा हमदर्द
जिसे ताड़मेटला के
जंगलों में तड़पे
क्षत-विक्षत होते
दम तोड़ते
छिहत्तर
मां के सपूतों का
दर्द नहीं खींचता
गांवों में बेहोश होती
जंगलों में मुखबिरों के नाम पर
सैकड़ों काट डाले गए
मजलुमों की बीवियों की चीख
नहीं सुनाई देती
अनगिनत लाशों के
चेहरे से कफन हटाती
कांपती, थरथराती
बहनों की हाथों में सजी
राखी की थाली से बुझे हुए
कपूर के धुएं की काली
लकीरें नजर नहीं आती
मिस्टर जेठमलानी
तुम्हें तनिक भी
ग्लानि नहीं कि
तुम सिर्फ ऐसे-वैसों
के ही केस लेते हो,
लड़ते हो
सुप्रीम अधिवक्ता
होने का दम भरते हो?
मिस्टर राम
उस वक्त तुम्हारी
हेठी कहां थी
जब
सन चौरासी की मांए
छाती पीट रही थीं
जेसिका लाल के परिजन
न्याय के लिए दर-दर
भटक रहे थे।
आरुषि की फाइलें
बंद हो रही थीं
क्या कहा
तुमने राम
तुम दौलत के लिए नहीं
अपने पेशे और व्यवस्था
के लिए लड़ते हो?
तो आओ
हम तुम्हें
दौलत भी देंगे
अफ्रीका में काले-गोरे का
भेद मिटाने वाले
गांधी की तरह
अनंतकाल तक नहीं
मिटने वाला
शोहरत भी
ऐसे मामलों की फाइलें
एक-दो नहीं
सैकड़ों में हैं
इन्हें अदालतों में
न्याय दिलाकर
तुम्हारी कई पीढ़ियां भी
तर जाएंगी
महात्मा की तरह
अमर हो जाएंगी
काश्मीर-गोधरा से शुरू कर
बिहार के हैबसपुरा
उत्तर प्रदेश के मेरठ
सहारनपुर, उड़ीसा की
बेलपहाड़ी, असम के
तिनसुकिया, कोंकड़ाझाड़
से लेकर पश्चिम बंगाल के
लालगढ़,
एमपी से आंध्रप्रदेश तक
वैसे तो
हजारों फाइलों में
अस्सी हजार जिंदगियां
न्याय की आस में
भटक रही हैं
तुम तो बस
छत्तीसगढ़ के
सात जिले भी नहीं
सिर्फ
बस्तर-दंतेवाड़ा के
कैंपों में सिसक रहे
निरीह बचपनों के आंखों से
सपने छीनकर आंसू भरने
वाले दरिंदों को
फांसी नहीं
सिर्फ
सींकचों के पीछे
पहुंचा दो
इतना तो तुम
कर सकते हो न
आईपीसी के म्लानी?
चलो, इतना छोड़ो
जिंदगी के अपने
आखरी पड़ाव में
दिल्ली को छोड़
बिहड़ों और जंगलों में
कहां तक
भटकोगे मिस्टर राम
तुम तो बस
इतना कर दो
आदर्श सोसायटी के
वाजिबों को
उनका हक
दिलवा दो
अगर, इतना भी  नहीं
कर सकते
तो तुम्हें
कोई हक नहीं
भारतीय लोकतंत्र और
उसकी न्याय व्यवस्था को
शक की निगाह से
देखने वाले यूरोपीय
पर्यवेक्षकों को
शह देने का
अपनी नापाक दलीलों को
वकालत के पाक पेशे का
नाम देने का...


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें