
रविवार, 29 जनवरी 2012
...तो शहर रहेगा साफ-सुथरा

नहीं जानते संविधान को

हौसला अफजाई की दरकार

सोमवार, 23 जनवरी 2012
रायपुर कलेक्टर पर मेहरबान दुर्ग पुलिस
शुक्रवार, 20 जनवरी 2012
ट्विनसिटी के क्लबों का कल्चर
डाउनलोडिंग जरा संभलकर
बढ़ा पुरानी बाइक का क्रेज

परदेस में हैं मेरे भईया
नेता जी सुभाष चंद्र बोस की ऐसी दुर्गति देखी नहीं होगी आपने!

गुरुवार, 19 जनवरी 2012
वेबसाइट से फैकल्टी संबंधी आर्डनेंस गायब
शनिवार, 14 जनवरी 2012
कम पानी है बीमारी की जड़

मुन्नी, शीला के बाद चमेली की बारी

स्टूडेंट्स जुटे एग्जाम के फाइनल टच में

कहीं भी खरीद सकेंगे आभूषण

शुक्रवार, 13 जनवरी 2012
नाटक के जरिए पेश किया बुराइयों को
इस श्लेडी दबंग से खौफ खाते हैं अपराधी जानते हैं क्यो?

यूं ही नहीं मरती थी इस श्दबंग सिंघम पर लड़कियांए
पटना के पुलिस अधीक्षक नगर के रूप में शिवदीप लांडे ने सिर्फ 10 महीने ही रहेए लेकिन वे अपने काम से लड़कियों के दिलों पर ऐसे छा गए कि उनके अररिया ट्रांसफर के बाद भी पटना के लोग याद याद कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि इस दबंग सिंघम के काम से प्रभावित युवतियां अब भी उन्हें फोन व एसएमएस कर उनके सामने प्रेम व विवाह का प्रस्ताव भेज रही हैं। इसका सबसे बड़ा कारण ये था कि मुसीबत के वक्त ये एसपी खुद अपराधियों के लिए परेशानी का सबब बन जाता था। तस्वीरों में देखें इस दबंग आईपीएस की दबंगई की तस्वीरेंए जिसने अपराधियों में खौफ पैदा कर दिया था।
सोमवार, 9 जनवरी 2012
सामली गाँव से मॉडलिंग रैम्प तक
राजेश जोशी 
रविवार, 8 जनवरी 2012
कैद में हैं भगवान, छुड़ाने की जमानत राशि है 45 लाख

ब्रिटिश डाक्यूमेंट्री में काम करने का ऑफऱ
नन्ही जादूगर कंचन प्रिया ने किया अचंभित
धनंजय मिश्रशुक्रवार, 6 जनवरी 2012
जरा देखिये इस तस्वीर को
जरा देखिये इस तस्वीर को. इस उम्र में भी अपने हाथ में राईफल रखकर ज़ुल्म से लड़ने को तैयार हैं ये बूढ़े हाथ. जी हाँ सही पहचाना आपने, ये बुजुर्गवार महिला ही हैं. इनके अन्दर भी ज़ज्बा है मर्दों के साथ कंधे से कन्धा मिलकर चलने की, मर्दों के समकक्ष अपने आप को खड़ा करने की. लेकिन कुछ महिलाएं/लडकियां अपने आपको मर्दों/लड़कों के समक्ष खड़ा करने के लिए अपने मूंह में सिगरेट सुलगाती हैं और शराब की बोतलें लुढ्काती हैं या अंततः नशे में चूर होकर राह में कहीं लुढकी हुयी मिल जाती हैं. इनके लिए समकक्षता के लिए नकारात्मक चीजों के साथ प्रतियोगिता ही समकक्षता की परिभाषा बन जाती है. सकारात्मकता से ना तो ऐसे लोगों का वास्ता होता है और ना ही मतलब. वही कुछ महिलाएं/लडकियां जो पुरुष-प्रधान समाज में अपनी पहचान बनाने को अग्रसर हैं वो नौकरी, बिजनेस करती हैं और अपनी पहुँच इन दोनों चीजों में यहाँ तक पहुंचा चुकी हैं जहाँ पर पुरुषों का ही वर्चस्व था. अगर देखा जाए तो अपने आप को पुरुषों के समकक्ष ही इन्होने नहीं खड़ा किया है बल्कि पुरुषों के आदर्श के रूप में भी सामने आई हैं. यही कारण है की इस देश में रानी लक्ष्मी बाई हुयीं, सरोजनी नायडू हुईं, कल्पना चावला जैसी और भी अनगिनत महिलाएं हुईं जिन्होंने पुरुष-प्रधान समाज में अपनी एक अलग पहचान बनायी.काश ! मूंह में सिगरेट सुलगा कर धुएं के छल्ले बनाने वाली, बीअर बार के किसी कोने में लुढकी, राह चलते किसी किनारे नशे के हालत में गिरी-पड़ी या अपने पहचान के लिए अपने जिस्म की नुमाईश करने वाली लडकियां/महिलाएं भी समझ पाती की 'पहचान' की परिभाषा क्या होती है और 'समकक्षता' का सही मतलब क्या होता है.खूबसुरत बनाना है बिहार को : डा राजीव सिन्हा
उनका सपना खुबसूरत बिहार बनाने का है। इसके लिये वे हरसंभव प्रयास भी कर रहे हैं। बिना यह आकलन किये कि उनके प्रयास का फ़ल क्या होगा, बिल्कुल वैसे ही जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में कहा है। हम जिनकी बात कर रहे हैं उनका नाम डा राजीव सिन्हा है। ये मूल रुप से बिहार के हैं और वर्तमान में आस्ट्रेलियाई शहर ब्रिसबेन के ग्रीफ़िथ युनिवर्सिटी में कृषि विज्ञान के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं। जैविक खेती को लेकर इनकी ख्याति पूरी दुनिया में है। इसका अनुमान इसी मात्र से लगाया जा सकता है कि इनके अनुरोध पर एग्रो केमिकल कंपनियों के दबाव के बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने देश में वर्मी कम्पोस्ट के औद्योगिक उत्पादन को हरी झंडी दी। डा सिन्हा की विशेषज्ञता का उपयोग आस्ट्रेलियाई सरकार ने भी जनहित में किया है। विशेषकर इनके द्वारा इजाद की गई अर्थवर्म तकनीक पर आधारित सीवरेज प्लांट का उपयोग अब चिली और मैकिस्को आदि देशों में भी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। भारत में गुजरात के भावनगर शहर में सरकार ने डा सिन्हा के अनुभवों का भरपूर उपयोग करते हुए वाटर मैनेजमेंट एंड प्यूरीफ़िकेशन सिस्टम को सजीव किया है। डा सिन्हा वर्तमान में पटना में छुट्टियां मनाने आये हैं। इस दौरान इन्होंने “अपना बिहार” के साथ विशेष बातचीत की। डा सिन्हा ने बताया कि आज पूरे विश्व में जैविक खेती ही एक मात्र विकल्प रह गया है। खेती में खतरनाक रसायनों के उपयोग का हश्र पूरी दुनिया देख चुकी है। अभी हाल ही में अमेरिकी सरकार द्वारा कराये गये सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया है कि केवल रसायनिक ऊर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग के कारण अमेरिका में करीब 20 हजार लोग हर साल बेमौत मर जाते हैं। यही स्थिति पूरे विश्व की है। डा सिन्हा बताते हैं कि केंचुआ असल में मानव जीवन के लिये वरदान है। अब तो विश्व के कई हिस्सों में यह समेकित खेती के लिये सबसे अधिक उपयोगी साबित हो रहा है। मसलन अस्ट्रेलिया में लोग वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने से लेकर गायों के चारे के रुप में भी केंचुआ का इस्तेमाल करते हैं। डा सिन्हा बताते हैं कि केंचुआ के शरीर में एंटी आक्सीडेंट तत्वों की प्रचुरता के अलावे पौष्टिकता के सारे तत्व मौजूद हैं और इनके खाने से गायें अधिक दूध एवं अधिक पौष्टिक दूध देती हैं। भारत में धर्म संबंधी मान्यताओं के वजह से यह संभव नहीं है तब भी पाल्ट्री के क्षेत्र में केंचुओं का इस्तेमाल किया जा सकता है। डा सिन्हा ने बताया कि केंचुआ केवल वर्मी कम्पोस्ट ही नहीं बनाता है, बल्कि इसका उपयोग पानी के शोधन के लिये भी किया जा सकता है। बिहार में यदि इस तकनीक पर जल शोधन इकाइयों की स्थापना हो तो निश्चित तौर पर गंगा के प्रदूषण पर नियंत्रण पाने में सफ़लता मिलेगी। इसका एक लाभ यह भी होगा कि बड़े पैमाने पर किसानों को जैविक खाद की आपूर्ति की जा सकेगी। बहरहाल, डा सिन्हा चाहते हैं पूरी दुनिया में प्रशंसित उनका यह तकनीक बिहार में भी अमल में लाया जाये, ताकि बिहार में सही मायनों में हरित क्रांति हो सके। लेकिन इन्हें अफ़सोस है कि इनके द्वारा इस संबंध में बिहार के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और कृषि मंत्री को भेजे गये अनेकों ईमेल का आजतक कोई जवाब नहीं मिल सका है। डा सिन्हा चाहते हैं कि यदि बिहार सरकार उनके इस तकनीक को देखना चाहती है तो उसे अपने विशेषज्ञों को दुनिया के उन हिस्सों में भेजना चाहिये जहां लोग उनकी इस तकनीक का लाभ उठा रहे हैं।
जीनत की आंखों में सजीव है नेताजी के भारत का सपना
वह 23 जनवरी 1944 का दिन था, जब आजाद हिंद फ़ौज की एक टुकड़ी ने भारतीय सीमा में प्रवेश किया। इस टुकड़ी के नायक ने भारतीय सीमा में घुसने के साथ ही आजाद हिंद फ़ौज का तिरंगा फ़हराया था। बाद में लड़ाई के दौरान वह नायक और उसकी दल के सभी सदस्य अंग्रेज सैनिकों द्वारा गिरफ़्तार कर लिये गये। दल के उस नायक को फ़ांसी की सजा सुना दी गई। लेकिन इससे पहले कि उन्हें फ़ांसी दी जाती, भारत आजाद हो गया और उन्हें रिहा कर दिया गया।
देश के लिये अपनी जान तक न्यौच्छावर करने वाले कर्नल महमूद अहमद आज दुनिया में नहीं हैं। उन्होंने जो सपना देखा था, वह आज भी उनकी पत्नी जीनत महमूद अहमद की आंखों में सजीव है। “अपना बिहार” के साथ विशेष बातचीत में श्रीमती अहमद ने बताया कि उनकी अपनी पैदाइश जम्मू में हुई थी। उनके पिता वजाहत हुसैन अपने समय में बिहार के गिने-चुने आईसीएस यानी इन्डियन सिविल सर्विस के अधिकारी थे। वे जम्मू कश्मीर में कार्यरत थे। बाद में उनका स्थानांतरण यूपी में कर दिया गया। वर्ष 1935 में आजादी के दीवानों ने गोरखपुर में विशाल जनसभा का आयोजन किया था। अंग्रेजी हुकूमत ने वजाहत हुसैन को जनसभा में गोली चलवाने का हुक्म दे दिया। इससे इन्कार करते हुए उन्होंने अंग्रेजों की नौकरी त्याग दी। बाद में वे भारतीय रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर सी वी देशमुख ने उन्हें डिप्टी गवर्नर बना दिया और इस प्रकार उनका परिवार बंबई चला गया।हम जिनकी बात कर रहे हैं, वह थे कर्नल महबूब अहमद। नेताजी सुभाषचंद्र बोस के सबसे निकट रहने वाले कर्नल अहमद बिहार के वैशाली जिले के दाऊदनगर के रहनेवाले थे। आजाद हिंद फ़ौज में शामिल होने से पहले वे ब्रिटिश सेना में कर्नल थे। जब नेताजी ने भारतीय सैनिकों को देश सेवा में आगे आने का आहवान किया तो कर्नल अहमद ने आगे बढकर ब्रिटिश सेना की नौकरी छोड़ दी और नेताजी के साथ हो गये। श्रीमती अहमद ने बताया कि उनकी मां सईदा भारत के अंतिम हिन्दू शासक पृथ्वीराज चौहान से था। ऐसा इसलिये कि पृथ्वीराज चौहान के खानदान के लोगों ने बाद में इस्लाम कबूल कर दिया था और पंजाब के बटाला में रहने लगे थे। कर्नल महबूब अहमद के साथ शादी के संबंध में पूछे गये सवाल पर श्रीमती अहमद ने बताया कि उस समय वे दिल्ली के मिरांडा हाऊस में एमए की प्रथम वर्ष की छात्रा थीं। शादी के समय उनकी उम्र 22 वर्ष और कर्नल अहमद की उम्र 37 वर्ष थी। कर्नल महबूब उस समय देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरु के अत्यंत करीब थे और उनके कहने पर ही उन्होंने भारतीय विदेश सेवा की नौकरी स्वीकार की।


