सोमवार, 23 जनवरी 2012

रायपुर कलेक्टर पर मेहरबान दुर्ग पुलिस

सीएसवीटीयू में फर्जीवाड़े की सुनवाई आज. एक साल से चल रही है पुलिस की जांच
नारद योगी
प्रदेश के इंजीनियरिंग कॉलेजों को नियम-विरूद्ध संबद्धता, अनापत्ति प्रमाण पत्र, छात्रों को प्रवेश देने संबंधी फर्जीवाड़े अहम भूमिका निभाने वाले तकनीकी शिक्षा संचालनालय(डीटीई) के अधिकारियों पर दुर्ग पुलिस मेहरबान है। खासकर तत्कालीन काउंसिलिंग समिति के अध्यक्ष और वर्तमान रायपुर कलेक्टर डा. रोहित यादव पर। इसमें मामले में पुलिस ने डा. यादव से अब तक पूछताछ नहीं की है और नहीं उन्हें नोटिस जारी कर सफाई मांगी है। इससे साफ है कि पुलिस ने अब तक आईएएस अधिकारी को बचाने केे लिए जांच में पक्षपात किया। उल्लेखनीय है कि स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय(सीएसवीटीयू) में अनियमितता की जांच के दौरान डीटीई के अधिकारियों की भूमिका का भी खुलासा हुआ है। काउंसिलिंग समिति ने वर्ष २०१०-११ में बिना एनओसी और संबद्धता के ३० इंजीनियरिंग कॉलेजों को कांउसिलिंग में शामिल कर लिया। समिति के अध्यक्ष थे डीटीई के तत्कालीन संचालक डा. रोहित यादव और सदस्यों में डा. एमआर खान, जीएस बेदी और जीपी नायक शामिल थे। उल्लेखनीय है कि इस फर्जीवाड़े में सीएसवीटीयू के कुलपति और पूर्व रजिस्ट्रार सहित ३० से अधिक कॉलेज संचालक शामिल हैं। साथ ही अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद(एआईसीटीई) के चेयरमैन सहित अन्य अधिकारियों का नाम भी जुड़ा है।
बदली जांच की दिशा
२९ अक्टूबर २०११ को जांच अधिकारी संजय पुंढीर ने डीटीई के संचालक के सुब्रह्मण्यम धारा ९१ के तहत नोटिस जारी कर काउंसिलिंग संबंधी जानकारी मांगी। इसका जवाब पुलिस को ११ नवंबर को मिला। इसमें काउंसिलिंग समिति और बिना अनापत्ति प्रमाण पत्र के शामिल होने वाले कॉलेज और उनके संचालकों के नाम थे। काउंसिलिंग समिति में डा. यादव का नाम आने के बाद पुलिस ने जांच की दिशा ही बदल दी। कांउसिलिंग समिति के अध्यक्ष होने के नाते फर्जीवाड़े के संबंध में पूछताछ करने की बजाय, जांच अधिकारियों ने मामले में उनका नाम ही नहीं जोड़ा। किसी भी जांच अधिकारी ने काउंसिलिंग समिति को जांच के दायरे में शामिल ही नहीं किया है।
फर्जीवाड़े का इन्हें मिला लाभ
शासकीय अधिकारियों द्वारा अपने पद का दुरुपयोग करके बिना संबद्धता और एनओसी के काउंसिलिंग में शामिल करने का लाभ लेने वाले इंजीनियरिंग कॉलेजों के संचालकों में शरद शुक्ला, अतुल कुमार, डा. एमके कोवर, आईपी मिश्रा, किशोर भंडारी, सुशील चंद्राकर, डा. आर पुरुसवानी, डा. आईए खान, इतेश कुमार जंघेल, एमके अग्रवाल, निलेश देवांगन, नलिन लूनिया, गिरीश देवांगन, संजय बघेल, दीपक शर्मा, डा. लक्ष्मी सिंह धु्रव, बीएल खंडेलवाल, अतुल कुमार, डा. पीबी देशमुख, संजय रूंगटा, सोनल रूंगटा, सौरभ रूंगटा, प्रीति दावरा, विनय चंद्राकर, विजय जदवानी, सौरभ बरडिया, शैलेंद्र जैन, अजय प्रकाश वर्मा शामिल हैं। इन कॉलेज संचालकों ने छात्रों को अपनी संस्था में नियम-विरूद्ध प्रवेश दिया।
२२ वीं सुनवाई आज
सीएसवीटीयू में फर्जीवाड़े पर २२वीं सुनवाई सोमवार को डीजे अशोक कुमार पंडा के न्यायालय में होगी। अब तक तीन न्यायाधीशों के कोर्ट में २१ बार सुनवाई हो चुकी है। हर सुनवाई में पुलिस के विवेचना अधिकारी मामले की जांच को आगे बढ़ाने की बजाय, कोर्ट को उलझाने की कोशिश की। वर्तमान में तीसरे जांच अधिकारी दुर्ग सीएसपी रविंद्र उपाध्याय भी डीजे के पास पहले दिन उपस्थित नहीं हुए थे। उ
जांच अधिकारी गंभीर नहीं
इस हाईप्रोफाइल फर्जीवाड़े के आरोपियों को सजा तक पहुंचाने में पुलिस कितनी गंभीर है, इसका इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि नए जांच अधिकारी उपाध्याय ने केस डायरी को खोलकर अभी देखा भी नहीं है। इस संबंध में पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि अभी इसे देख नहीं पाया हूं। इस संबंध में ज्यादा जानकारी नहीं है।
सबूत है, तो जेल होगी
कानून के जानकारों का मानना है कि फर्जीवाड़े में भष्ट्राचार निवारण अधिनियम की धारा जुडऩे और साक्ष्य प्राप्त होने से आरोपियों की गिरफ्तारी तय है। इस संबंध में एंटी करप्शन ब्यूरो(एसीबी) के एएसपी मनोज खिलाडी ने बताया कि किसी को ट्रेस करने के दौरान उसके रंगे हुए हाथ, मौके पर मौजूद राशि आदि मिलने के कारण भष्ट्राचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत उसकी तत्काल गिरफ्तारी होती है। अगर किसी मामले में भष्ट्राचार निवारण अधिनियम लगा है और उसके दस्तावेजी साक्ष्य प्राप्त हैं, तो गिरफ्तारी होना तय है।

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