रविवार, 8 जनवरी 2012

नन्ही जादूगर कंचन प्रिया ने किया अचंभित

धनंजय मिश्र
कल तक घर की चौखट के अंदर रहने वाली बिहार की महिलायें सकारात्मक बदलाव की मुहिम में नया अध्याय जोड़ रही हैं। घर की दहलीज से बाहर निकल सामाजिक बदलाव के हर क्षेत्र में बुलंदियों पर परचम लहराने वाली इन महिलाओ ने हिन्दी साहित्य के उस मुहावरे को भी झुठला दिया, जिसके तहत चूड़ी पहन बैठ जाना, कामचोरी व कायरता का पर्याय माना जाता था। गांधीगीरी और अन्नागीरी के इस दौर में जब सरकारी बाबूओं को चूडिय़ां भेट करना आंदोलन का अंग बन गया है, वहां महिलाओं ने विरोधके इस प्रतीकात्मक तरीके पर पुर्नविचार करने को विवश कर दिया है।
कराया चूड़ी की ताकत का अहसास - अपनी कोशिशों से समाज को बदल डालने का जज्बा रखने वाली महिलाओं ने चूड़ी की ताकत का अहसास कराया है। मुजफरपुर की किसान चाची हो या हनी गर्ल अनीता या फिर वेश्याओं के जीवन में बदलाव के लिये संघर्षरत नसीमा या फिर बिहार की पहली महिला जादूगर कंचन प्रिया, लोक - संस्कृति को सहेजने में जुटी अनीता भी। इस पिछडे प्रदेश की ये महिलायें अब ऑइकन बन चुकी हैं. बिहार के मेहनतकश किसानों के लिए किसान चाची प्रेरणास्रोत बन चुकी हैं। उनकी कृति का डंका सिर्फ बिहार में ही नहीं बल्कि सरहद पार भी बज चुका है। गांव की पगडंडियों पर साईकिल चलाकर किसानों को खेती की नई गुर सिखाने वाली 65 वर्षीय राजकुमारी देवी को महिला सशक्तिकरण का उदाहरण माना जाता है। हनी गर्ल अनीता पर यूनेस्को ने फिल्म तक बना डाली। विश्व खाद्य दिवस पर उसे महिला मॉडल किसान की उपाधि से समानित किया गया।
छोटी सी उम्र में अनीता के बड़े कारनामे - छोटी सी उम्र में ही संघर्ष ने अनीता को वह मुकाम दिया कि कारपोरेट जगत में भी वह छा गई। रेड लाईट एरिया के वेश्याओं की अंधेरी गलियों से बाहर निकल कर ज्ञान की रोशनी फैलाने में नसीमा का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। सूबे के 25 जिलो के 50 रेडलाईट एरिया की महिलाओं व बच्चों की स्थिति के आकलन के लिये सी वोटर्स के सहयोग से सर्वेक्षण कार्य पूरा किया जा चुका है।
नन्ही जादूगर कंचन प्रिया ने किया अचंभित - मुजफ्फरपुर के सकरा प्रखंड के सुस्ता मोहमदपुर कि नन्हीं सी जादूगर कंचन प्रिया ने अपनी हाथ की अंगुलियों के इशारे पर बडे-बडे ककरामात से लोगों को अचभिँत कर दिया है। गांव की पगड़डियों से होकर चली उसके संघर्ष की कहानी और उससे मिलने वाली कामयाबी हाईटेक हो गयी है। पिता एक साधारण राज मिस्त्री थे। बचपन से लोकगीत सुनने में अभिरूचि रखने वाली कंचन अपने एक रिश्तेदार से जादूई कला में पारंगत हुई। काफी कम समय में इस नन्हीं सी बालिका ने जादूगरी के क्षेत्र में कई नये आयाम गढे और देश के कई मंचों पर अपना लोहा मनवाया। सिनेमा व टीवी के इस दौर में जब जादूगरी के प्रति लोगों का रूझान कम पड़ गया है, ऐसी परिस्थिति में भी कंचन प्रिया ने एक से बढ़ एक करतब दिखा लोगों का दिल जीत लिया है।

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