शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

जरा देखिये इस तस्वीर को

जरा देखिये इस तस्वीर को. इस उम्र में भी अपने हाथ में राईफल रखकर ज़ुल्म से लड़ने को तैयार हैं ये बूढ़े हाथ. जी हाँ सही पहचाना आपने, ये बुजुर्गवार महिला ही हैं. इनके अन्दर भी ज़ज्बा है मर्दों के साथ कंधे से कन्धा मिलकर चलने की, मर्दों के समकक्ष अपने आप को खड़ा करने की. लेकिन कुछ महिलाएं/लडकियां अपने आपको मर्दों/लड़कों के समक्ष खड़ा करने के लिए अपने मूंह में सिगरेट सुलगाती हैं और शराब की बोतलें लुढ्काती हैं या अंततः नशे में चूर होकर राह में कहीं लुढकी हुयी मिल जाती हैं. इनके लिए समकक्षता के लिए नकारात्मक चीजों के साथ प्रतियोगिता ही समकक्षता की परिभाषा बन जाती है. सकारात्मकता से ना तो ऐसे लोगों का वास्ता होता है और ना ही मतलब. वही कुछ महिलाएं/लडकियां जो पुरुष-प्रधान समाज में अपनी पहचान बनाने को अग्रसर हैं वो नौकरी, बिजनेस करती हैं और अपनी पहुँच इन दोनों चीजों में यहाँ तक पहुंचा चुकी हैं जहाँ पर पुरुषों का ही वर्चस्व था. अगर देखा जाए तो अपने आप को पुरुषों के समकक्ष ही इन्होने नहीं खड़ा किया है बल्कि पुरुषों के आदर्श के रूप में भी सामने आई हैं. यही कारण है की इस देश में रानी लक्ष्मी बाई हुयीं, सरोजनी नायडू हुईं, कल्पना चावला जैसी और भी अनगिनत महिलाएं हुईं जिन्होंने पुरुष-प्रधान समाज में अपनी एक अलग पहचान बनायी.काश ! मूंह में सिगरेट सुलगा कर धुएं के छल्ले बनाने वाली, बीअर बार के किसी कोने में लुढकी, राह चलते किसी किनारे नशे के हालत में गिरी-पड़ी या अपने पहचान के लिए अपने जिस्म की नुमाईश करने वाली लडकियां/महिलाएं भी समझ पाती की 'पहचान' की परिभाषा क्या होती है और 'समकक्षता' का सही मतलब क्या होता है.
- राज कामल

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