रविवार, 29 जनवरी 2012

...तो शहर रहेगा साफ-सुथरा

वेस्ट को सही ढंग से करें वेस्ट, लोग जागरूक हो जाएं, तो शहर की सुंदरता में चार चांद लग सकते हैं। घर में होने वाले कचरे को लोग कहीं भी फेंक देते हैं। जिसके चलते शहर के सुंदरता पर दाग तो लगते ही हैं, साथ ही गंदगी भी बढ़ जाती है। अगर घरों में होने वाले कचरे को व्यवस्थित ढंग से फेंका जाए, तो लोगों को गंदगी से छुटकारे के साथ शहर भी साफ-सुथरा नजर आएगा।
शेखर झा
अपने घर को सुंदर बनाने के लिए लोग घर की साफ-सफाई तो कर लेते हैं, लेकिन शहर को गंदा करने से नहीं चूकते। आखिर शहर की सफाई का जिम्मा भी नागरिकों का है ये बात शायद लोगों को याद नहीं रहती। लोग कचरे को कहीं भी खाली जगह पर फेंक देते हैं। चाहे वह खाली जगह अपने घर के सामने हो या किसी और के घर सामने।
महिलाओं की भूमिका अहम
घर की साफ-सफाई का जिम्मा महिलाओं पर होता है और अगर शहर को साफ रखना है तो महिलाओं को भी अपनी भूमिका समझनी होगी। पर्यावरणविदों की मानें तो घर ही पहला स्कूल होता है। अगर खुद माता-पिता ही घर के बाहर कचरा फैलाएंगे तो बच्चों को क्या सबक मिलेगा। महिलाएं अगर इन वेस्ट सामानों को सही ढंग से फेंके, तो शहर के सौंदर्यकृत होने में महत्वपूर्ण योगदान अदा कर सकती हैं। एक्सपर्ट का कहना है कि शहर में इस तरह की दिक्कतों को महिलाएं कुछ पल में ही दूर नहीं कर सकती हैं, लेकिन इसके लिए पहल जरूर कर सकती हैं। मेट्रो सिटी की तर्ज पर ट्विनसिटी में भी कचरा लेने के लिए घर तक गाड़ी आती है, लेकिन उसके बाद भी शहर के कई हिस्सों में कचरा फैला हुआ मिलता हैं। महिलाओं को वेस्ट सामानों को लेकर पहल करनी होगी, ताकि उन्हें देख दूसरे भी सबक लें।
नालियां नहीं होंगी चोक
अगर कचरे को सही ढंग से डिस्पोज किया जाए तो नालियां चोक होने की समस्या आसानी से खत्म हो सकती है, इसके लिए जरूरी है कि मेडिकल वेस्ट की तरह कचरे को भी बांटा जाए, यानी पॉलीथिन बेस वाले कचरे को अलग डिस्पोज किया जाए और घर के अन्य कचरे को अलग फेंका जाए। लोग वेस्ट सामानों को फेंकने को लेकर सजग हो जाएं, तो गंदगी को काफी हद तक कम किया जा सकता हैं। घर से निकलने वाले कचरे को सही जगह पर डंप किया जाए, तो शहर की सुंदरता को चार चांद लगाए जा सकते हैं। राधिका नगर निवासी रेणु चौबे कहती हैं कि वह घर में होने वाले वेस्ट सामानों को जमीन के अंदर डाल देती हैं। उससे कहीं भी कचरा देखने को नहीं मिलता है। वेस्ट सामानों को जमीन में दबाने कई फायदे हैं। पहला तो शहर में कहीं कचरा देखने को नहीं मिलेगा और दूसरा वेस्ट समानों को कहां फें के, उसकी टेंशन भी खत्म हो जाएगी।
हो जाएगी रिसाइकिल
लोगों के द्वारा फेंके जाने वाले पॉलीथिन को एक जगह एकत्रित करके जमीन में दबा दिया जाए, तो कोई दिक्कत नहीं होगी। पॉलीथिन के बाहर फेंकने से पर्यावरण के साथ जानवरों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ता हैं। अक्सर लोग घरों में होने वाले कचरे को पॉलीथिन में डालकर बाहर फेंक देते हैं। साथ ही रद्दी कागज और किचन के वेस्ट सामानों को जमीन के अंदर डाल दिया जाए, तो न ही पर्यावरण पर बुरा असर पड़ेगा और न ही लोगों पर।
आउटर में होना चाहिए टेंचिंग ग्राउंड
ट्विनसिटी में कई जगह ऐसी हैं, जहां आपको कचरा दिख जाएगा। वैशाली नगर, राधिका नगर, जवाहर नगर, मौर्या टॉकीज चौक के पास कचरा दिखना आम है। कचरा फेंकने के लिए नगर निगम के द्वारा शहर के आउटर में खाली जगह है। वहां गाडिय़ों के माध्यम से कचरा फेंका जाता है। कुछ दिन रहने के बाद कचरे में आग लगाकर जला दिया जाता है। टेंचिंग ग्राउंड के शहर से दूर होने पर लोगों को गंदगी का सामना नहीं करना पड़ता है।
जागरुकता की कमी
घरों में होने वाले कचरे के लिए नगर निगम की ओर से गाडिय़ां चलाई जा रही हैं, लेकिन उसके बाद भी कई घरों के सामने कचरा पड़ा रहता है। लोगों में जागरुकता की कमी है। घर में होने वाले वेस्ट सामानों को किसी एक जगह एकत्रित करके रखें और गाड़ी आने पर उसमें डाल दें। अगर शहर के लोग ऐसा करते हैं, तो गंदगी से आसानी से निजात मिल जाएगी।
-निर्मला यादव, महापौर भिलाई नगर निगम
ये हैं फायदे
० शहर दिखेगा साफ और सुंदर
० नालियां नहीं होंगी चोक
० गंदगी से मिलेगा छुटकारा
० पर्यावरण रहेगा ठीक
ये हैं नुकसान
० मच्छरों से रहते हैं परेशान
० पॉलीथिन होती है घातक
० सुंदरता में आती है बाधा
० अक्सर नालियां हो जाती है जाम
० हर जगह सिर्फ दिखता वेस्ट
० पशुओं के निगल लेने से उनकी जान को खतरा

नहीं जानते संविधान को

सर्वे में हुआ खुलासा, सिर्फ ४० फीसदी स्टूडेंट्स रूबरू हैं सविधान से
शेखर झा
गणतंत्र दिवस का कौन सा वर्ष हैï? संविधान के कितने अनुच्छेद और अनुसूचियां हैं? संविधान में अब तक कितने संशोधन हुए हैंï? ऐसे ही कई सवालों से आज भी स्टूडेंट्स अनजान हैं। मंगलवार को जस्ट ट्विनसिटी के सर्वे में इसका खुलासा हुआ। जिसमें सिर्फ ४० फीसदी स्टूडेंट्स को अपने संविधान के बारे में जानकारी है। वहीं कई स्टूडेंट्स को तो ये तक नहीं पता कि इस बार गणतंत्र दिवस का कौन सा वर्ष है। हर साल की तरह इस बार भी ट्विनसिटी के स्कूलों और कॉलेजों में गणतंत्र दिवस की तैयारी चल रही हैं। जब स्टूडेंट्स से पूछा गया कि वे इस बार कौन-सा गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे हैं, तो कुछ एक दूसरे का मुंह ताकते नजर आए तो कुछ अंगुलियों पर काउंटिंग करते। ऐसा नहीं है कि ये हाल कुछ स्टूडेंट या कुछ लोगों का है, लगभग यही हाल पूरे देश का है। लोगों को न तो अपने मौलिक अधिकारों के बारे में पता है और न ही संविधान के बारे में। विशेषज्ञों का मानना है कि स्टूडेंट्स सिर्फ और सिर्फ अपनी रुचि के अनुसार ज्ञान अर्जित करते हैं। जिस तरह स्टूडेंट्स अपने स्कूल व कॉलेज के कोर्स को पूरा करने में कड़ी मेहनत करते हैं। उसी तरह उनको अपने संविधान के बारे में जानकारी अर्जित करनी चाहिए। उससे जानकारियां तो बढ़ेंगी ही साथ ही देश के संविधान से रूबरू भी होंगे।
६० फीसदी स्टूडेंट्स को नहीं है जानकारी
मंगलवार को जस्ट ट्विनसिटी ने शहर के स्कूलों व कॉलेजों में सर्वे किया। जिसमें संविधान संबंधित दस प्रश्न थे। जिसको स्टूडेंट्स ने हल किया। उसने पता चला कि ६० फीसदी स्टूडेंट्स को संविधान के बारे में जानकारी नहीं है। सर्वे में स्कूल व कॉलेज के ५० स्टूडेंट्स शामिल थे। जिसमें सिर्फ २० स्टूडेंट्स को ही संविधान की सही जानकारी थी।
जागरुकता की कमी
प्रिंसिपल एचएन दुबे ने बताया कि संविधान के बारे में स्टूडेंट्स तो अलग पेरेंट्स तक को जानकारी नहीं है। अगर पेरेंट्स को ही जानकारी नहीं है, तो स्टूडेंट्स को कहां से जानकारी रहेगी। एक तरह से कहा जा सकता है कि लोगों में जागरुकता की कमी है। स्टूडेंट्स अपनी रुचि के अनुसार सब्जेक्ट की तैयारी करते हैं। बहुत कम ही ऐसे स्टूडेंट्स रहते हैं, जो देश से जुड़ी जानकारियों को समय-समय पर प्राप्त करते रहते हैं। उन्होंने कहा कि स्टूडेंट्स देश के मूल चरित्र के बारे में जानने की कोशिश ही नहीं करते हैं।
बनना होगा जिम्मेदार नागरिक
कुशाभाऊ ठाकरे जनसंचार एवं पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि सामाजिक आंदोलन की कमी है। स्टूडेंट्स देश के भविष्य हैं। सामाजिक आंदोलन से लोगों को संविधान के बारे में जानने को मिलेगा तो वे एक जिम्मेदार नागरिक बनने में सफल रहेंगे। उन्होंने कहा कि अधिकारों को लेकर लोग तो सतर्क हैं, लेकिन बात कर्तव्य की आती है, तो लोग पीछे हो जाते हैं। जिस तरह लोग अधिकारों को लेकर सतर्क हैं, उसी तरह कर्तव्यों के प्रति भी रहना चाहिए।
जाननी होगी अहमियत
शासकीय अधिवक्ता पुष्पा रानी पाड़ी ने बताया कि गणतंत्र दिवस को, तो लोग काफी खुशी से मनाते हैं, लेकिन उसके बारे में जानकारी एकत्रित नहीं करते हैं। अभी के स्टूडेंट्स सिर्फ और सिर्फ अपने अधिक माक्र्स और कॉम्पीटिशन एग्जाम को टारगेट करते हैं। कहा जा सकता है कि डॉक्टर, इंजीनियर बनने की होड़ में स्टूडेंट्स संविधान से दूर होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि शासकीय और प्राइवेट स्कूल व कॉलेज की ओर से संविधान के प्रति स्टूडेंट्स को जागरूक करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिएं। जिसके माध्यम से स्टूडेंट्स को संविधान के बारे में जानने का अवसर मिले।
सर्वे में हुआ खुलासा,
इस वर्ष कौन सा गणतंत्र दिवस मना रहे हैं?
३२त्न
भारतीय संविधान के निर्माता कौन हैं?
१००त्न
भारत का संविधान कब बनाया गया?
३२त्न
भारतीय संविधान को कब लागू किया गया?
१००त्न
राजपथ पर आयोजित कार्यक्रम में झंडा कौन फहराता है?
८०त्न
गणतंत्र दिवस पर कौन सा महत्वपूर्ण सम्मान दिया जाता है?
४४त्न
संविधान में कितने अनुच्छेद एवं अनुसूचियां हैं।
००त्न
गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजपथ पर कितनी तोपों की सलामी दी जाती है।
५६त्न
संविधान में मौलिक अधिकार किसे कहते हैं।
३६त्न
संविधान में अब तक कितने संशोधन हुए हैं।
००त्न
(नोट : सर्वे में अलग-अलग स्कूल-कॉलेजों के ५० स्टूडेंट्स से ये सवाल किए गए जिनका जबाव प्रतिशत में दिया गया है।)

हौसला अफजाई की दरकार

ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज पर जस्ट ट्विनसिटी बोली - सीनियर खिलाडिय़ों का एक साथ सन्यास भी अनुचित, नए खिलाडिय़ों को मिले पर्याप्त मौका
शेखर झा
आस्ट्रेलिया में टीम इंडिया की शर्मनाक हार के बाद सीनियर खिलाडिय़ों पर अंगुलियां उठनी शुरू हो गई हैं। मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के साथ मिस्टर रिलायबल राहुल द्रविड़ और वैरी वैरी स्पैशल लक्ष्मण के खेल से सन्यास ले लेने के सुझाव आ रहे हैं। हर कोई भारतीय टीम को कोस रहा है, पर ट्विनसिटी के खेल प्रमियों को कहना है कि अभी टीम का हौसला बढ़ाने का समय है। टीम को ऑस्ट्रेलिया में त्रिकोणीय एक दिवसीय सीरीज खेलनी है। क्रिकेट प्रमियों का मानना है कि चयनकर्ताओं को सीनियर खिलाडिय़ों के साथ नए खिलाडिय़ों को पर्याप्त मौका देकर उन पर भरोसा जताना चाहिए। विराट कोहली इसके उदाहरण हैं। सीरीज के शुरूआत में फ्लॉप होने के बाद उन्होंने अद्र्धशतक और शतक जमाया। तीनों सीनियर खिलाडिय़ा के रिटायरमेंट के मुद्दे पर शनिवार को 'जस्ट ट्विनसिटीÓ ने शहर के क्रिकेटप्रेमियों से चर्चा की। उन्होंने कहा कि भले ही इंडिया टीम इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया टीम से लगातार ८ मैच हारी है, लेकिन यह वही टीम है जिसने घरेलू सीरीज में कंगारुओं को २-० से पराजित किया था। यह सही है कि सीनियर खिलाडिय़ों को अपने प्रदर्शन पर गौर करने का वक्त है पर सभी वरिष्ठ खिलाडिय़ों को एक साथ टीम से निकालना भी उचित नहीं होगा। चयनकर्ताओं की रणनीति में सुधार जरूरी है।
अंतर रहता है पिच का
इंडिया में फ्लैट ट्रेक हैं और विदेशों में बाउंसिंग। इंडिया टीम के खिलाड़ी फ्लेट ट्रेक पर अच्छा खेलते हैं, लेकिन उनको जैसे ही उछाल वाला पिच मिलता है, तो वह लडख़ड़ा जाते हैं। कहीं न कहीं टीम के हार के पीछे पिच का स्वभाव बड़ा कारण होता है। इंडिया टीम के खिलाडिय़ों को सभी तरह की पिचों पर खेलने का अभ्यास करना चाहिए।
- राजा बेनर्जी, क्रिकेट कोच
सीनियर प्लेयर्स जरूरी
क्रिकेट में कब कौन जीत जाए, किसी को पता नहीं रहता है, लेकिन विदेशी में लगातार दो सीरिज में इंडिया टीम को हार का सामना करना पड़ा। क्रिकेट पे्रमियों में नाराजगी देखने को मिल रही है और सीनियर खिलाडिय़ों को रिटायरमेंट लेने की बात कही जा रही है, लेकिन यह गलत हैं। जब तक टीम में सीनियर प्लेयर नहीं रहेंगे, तब तक नए खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएंगे। सीनियर प्लेयर्स से जूनियर प्लेयर्स को बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
- मोहन दास, क्रिकेट प्लेयर
सलेक्शन सही नहीं
इंडिया टीम में ऐसे कई नए खिलाड़ी हैं, जिनको टेस्ट मैच में मौका नहीं दिया जा रहा हैं। एक तरह से कहा जा सकता है कि चयनकर्ताओं द्वारा टीम में खिलाडिय़ों का चयन ठीक से नहीं किया जा रहा है। जब तक सामने वाली टीम के अनुरूप इंडिया टीम के खिलाडिय़ों का चयन नहीं होगा, तब तक ऐसे ही इंडिया टीम को हार का सामना करना पड़ेगा।
- अमोल पन्ना, क्रिकेटप्रेमी
देना चाहिए नए खिलाडिय़ों को मौका
टीम में नए खिलाडिय़ों को पर्याप्त मौका नहीं दिया जा रहा। सीनियर खिलाड़ी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर चुके हैं। अब नए खिलाडिय़ों को भी परफोर्म करने का अवसर दिया जाना चाहिए। इससे खेल में परिवर्तन देखने को मिल सकता हैं।
- नीरज एक्का, क्रिकेटप्रेमी
बॉक्स
वीवीएस लक्ष्मण
उम्र -३७ वर्ष
टेस्ट मैच १३४
रन ८७८१
सर्वाधिक रन २८१
औसत ४५.९७
शतक १७
अर्धशतक ५६
आस्ट्रेलिया दौरा
टेस्ट मैच
रन १५५
सर्वाधिक रन ६६
औसत १९.३७
शतक
अर्धशतक
सचिन तेंदुलकर
उम्र - ३८
टेस्ट मैच १८८
रन १५४७०
सर्वाधिक रन २४८
औसत ५५.४४
शतक ५१
अद्र्धशतक ६५
आस्ट्रेलिया दौरा
टेस्ट मैच
रन २८७
सर्वाधिक रन ८०
औसत ३५.८७
शतक
अर्धशतक
राहुल द्रविड
उम्र- ३९
करियर
टेस्ट मैच १६४
रन १३२०८
सर्वाधिक रन २७०
औसत ५२.३१
शतक ३६
अर्धशतक ६३
आस्ट्रेलिया दौरा
टेस्ट मैच
रन १९४
सर्वाधिक रन ६८
औसत २४.२५
शतक
अर्धशतक

सोमवार, 23 जनवरी 2012

रायपुर कलेक्टर पर मेहरबान दुर्ग पुलिस

सीएसवीटीयू में फर्जीवाड़े की सुनवाई आज. एक साल से चल रही है पुलिस की जांच
नारद योगी
प्रदेश के इंजीनियरिंग कॉलेजों को नियम-विरूद्ध संबद्धता, अनापत्ति प्रमाण पत्र, छात्रों को प्रवेश देने संबंधी फर्जीवाड़े अहम भूमिका निभाने वाले तकनीकी शिक्षा संचालनालय(डीटीई) के अधिकारियों पर दुर्ग पुलिस मेहरबान है। खासकर तत्कालीन काउंसिलिंग समिति के अध्यक्ष और वर्तमान रायपुर कलेक्टर डा. रोहित यादव पर। इसमें मामले में पुलिस ने डा. यादव से अब तक पूछताछ नहीं की है और नहीं उन्हें नोटिस जारी कर सफाई मांगी है। इससे साफ है कि पुलिस ने अब तक आईएएस अधिकारी को बचाने केे लिए जांच में पक्षपात किया। उल्लेखनीय है कि स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय(सीएसवीटीयू) में अनियमितता की जांच के दौरान डीटीई के अधिकारियों की भूमिका का भी खुलासा हुआ है। काउंसिलिंग समिति ने वर्ष २०१०-११ में बिना एनओसी और संबद्धता के ३० इंजीनियरिंग कॉलेजों को कांउसिलिंग में शामिल कर लिया। समिति के अध्यक्ष थे डीटीई के तत्कालीन संचालक डा. रोहित यादव और सदस्यों में डा. एमआर खान, जीएस बेदी और जीपी नायक शामिल थे। उल्लेखनीय है कि इस फर्जीवाड़े में सीएसवीटीयू के कुलपति और पूर्व रजिस्ट्रार सहित ३० से अधिक कॉलेज संचालक शामिल हैं। साथ ही अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद(एआईसीटीई) के चेयरमैन सहित अन्य अधिकारियों का नाम भी जुड़ा है।
बदली जांच की दिशा
२९ अक्टूबर २०११ को जांच अधिकारी संजय पुंढीर ने डीटीई के संचालक के सुब्रह्मण्यम धारा ९१ के तहत नोटिस जारी कर काउंसिलिंग संबंधी जानकारी मांगी। इसका जवाब पुलिस को ११ नवंबर को मिला। इसमें काउंसिलिंग समिति और बिना अनापत्ति प्रमाण पत्र के शामिल होने वाले कॉलेज और उनके संचालकों के नाम थे। काउंसिलिंग समिति में डा. यादव का नाम आने के बाद पुलिस ने जांच की दिशा ही बदल दी। कांउसिलिंग समिति के अध्यक्ष होने के नाते फर्जीवाड़े के संबंध में पूछताछ करने की बजाय, जांच अधिकारियों ने मामले में उनका नाम ही नहीं जोड़ा। किसी भी जांच अधिकारी ने काउंसिलिंग समिति को जांच के दायरे में शामिल ही नहीं किया है।
फर्जीवाड़े का इन्हें मिला लाभ
शासकीय अधिकारियों द्वारा अपने पद का दुरुपयोग करके बिना संबद्धता और एनओसी के काउंसिलिंग में शामिल करने का लाभ लेने वाले इंजीनियरिंग कॉलेजों के संचालकों में शरद शुक्ला, अतुल कुमार, डा. एमके कोवर, आईपी मिश्रा, किशोर भंडारी, सुशील चंद्राकर, डा. आर पुरुसवानी, डा. आईए खान, इतेश कुमार जंघेल, एमके अग्रवाल, निलेश देवांगन, नलिन लूनिया, गिरीश देवांगन, संजय बघेल, दीपक शर्मा, डा. लक्ष्मी सिंह धु्रव, बीएल खंडेलवाल, अतुल कुमार, डा. पीबी देशमुख, संजय रूंगटा, सोनल रूंगटा, सौरभ रूंगटा, प्रीति दावरा, विनय चंद्राकर, विजय जदवानी, सौरभ बरडिया, शैलेंद्र जैन, अजय प्रकाश वर्मा शामिल हैं। इन कॉलेज संचालकों ने छात्रों को अपनी संस्था में नियम-विरूद्ध प्रवेश दिया।
२२ वीं सुनवाई आज
सीएसवीटीयू में फर्जीवाड़े पर २२वीं सुनवाई सोमवार को डीजे अशोक कुमार पंडा के न्यायालय में होगी। अब तक तीन न्यायाधीशों के कोर्ट में २१ बार सुनवाई हो चुकी है। हर सुनवाई में पुलिस के विवेचना अधिकारी मामले की जांच को आगे बढ़ाने की बजाय, कोर्ट को उलझाने की कोशिश की। वर्तमान में तीसरे जांच अधिकारी दुर्ग सीएसपी रविंद्र उपाध्याय भी डीजे के पास पहले दिन उपस्थित नहीं हुए थे। उ
जांच अधिकारी गंभीर नहीं
इस हाईप्रोफाइल फर्जीवाड़े के आरोपियों को सजा तक पहुंचाने में पुलिस कितनी गंभीर है, इसका इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि नए जांच अधिकारी उपाध्याय ने केस डायरी को खोलकर अभी देखा भी नहीं है। इस संबंध में पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि अभी इसे देख नहीं पाया हूं। इस संबंध में ज्यादा जानकारी नहीं है।
सबूत है, तो जेल होगी
कानून के जानकारों का मानना है कि फर्जीवाड़े में भष्ट्राचार निवारण अधिनियम की धारा जुडऩे और साक्ष्य प्राप्त होने से आरोपियों की गिरफ्तारी तय है। इस संबंध में एंटी करप्शन ब्यूरो(एसीबी) के एएसपी मनोज खिलाडी ने बताया कि किसी को ट्रेस करने के दौरान उसके रंगे हुए हाथ, मौके पर मौजूद राशि आदि मिलने के कारण भष्ट्राचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत उसकी तत्काल गिरफ्तारी होती है। अगर किसी मामले में भष्ट्राचार निवारण अधिनियम लगा है और उसके दस्तावेजी साक्ष्य प्राप्त हैं, तो गिरफ्तारी होना तय है।

शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

ट्विनसिटी के क्लबों का कल्चर

ट्विनसिटी में क्लब कल्चर उफान पर है। बच्चों से लेकर बड़े तक सभी किसी न किसी क्लब से जुड़कर समाजसेवा से लेकर अपनी हॉबी को पूरा कर रहे हैं।
शेखर झा
इंसान हर पल और हर वक्त कुछ न कुछ नया जरूर सीखता है। कभी वह अपने बड़े से तो कभी अपने से छोटे से। ऐसा ही कुछ ट्विनसिटी के लोग सीख रहे हैं। यहां वुमन्स क्लब, हैपी क्लब, लाफिंग क्लब, डांस क्लब सहित अन्य कई क्लब है, जहां लोग एंजाय के साथ-साथ सोशल वर्क भी कर रहे हैं। लोगों का मानना है कि क्लब के माध्यम से बच्चों से लेकर बड़ों तक को प्लेटफार्म मिलता है। इतना ही नहीं अब तो अलग-अलग समाज में भी प्रतिभा को निखारने कई कार्यक्रम होने लगे हैं। क्लबों की ओर कभी डांस कंपीटिशन तो कभी समाजिक कार्य करने को लेकर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। शहर में कई क्लब ऐसे हैं जो अपने कार्यों को लेकर सम्मानित भी हो चुके हैं। क्लब के सदस्यों का कहना है कि बच्चे पढ़ाई और महिलाएं अपने घरों के काम में व्यस्त होने के कारण कई बार अपनी प्रतिभा को निखारने से वंछित रह जाते हैं, ऐसे में अगर
वे किसी कार्यक्रम में हिस्सा लेते हैं तो न सिर्फ उन्हें पहचान मिलती है बल्कि नई चीजों की जानकारी भी मिलती है।
यूथ के लिए भी क्लब
ट्विनसिटी में वुमन्स क्लब्स के साथ साथ यूथ के लिए भी क्लब है। जिसमें स्कूल और कॉलेज के स्टूडेंट जुड़े हुए हैं, जो समय समय पर स्टूडेंट्स के लिए स्पर्धाओं का आयोजन करते हैं, ताकि स्कूल में रहते हुए स्टूडेंट्स को प्लेटफार्म मिल सके। फिर चाहे वह क्वीज कंपीटिशन हो या ड्राइंग, पेटिंग या फिर स्टेज परफार्मेंस।
हंसने के लिए बना क्लब
लाफिंग क्लब के अध्यक्ष त्रयम्बक शर्मा ने बताया कि पंद्रह साल पहले उन्होंने अपने दोस्त के साथ मिलकर लाफिंग क्लब की शुरुआत की। क्लब का उद्देश्य यह है कि लोगों को हर समय हंसते हुए देखना। वे कहते हैं कि बिजी लाइफ में लोगों को अलावा टेंशन के कुछ नहीं मिलता, इसलिए उन्होंने केवल हंसने के लिए क्लब बनाया। क्लब में पहले उन्होंने कार्टून के माध्यम से लोगों को हंसाने का काम किया अब यह क्लब साल में एक बार शहर के लोगों को हंसाने के लिए बड़े पेमाने पर कार्यक्रम आयोजित करता है। क्लब के कार्य को देखकर २००८ में सम्मानित भी किया जा चुका है। इतना ही नहीं क्लब में देश के बाहर के लोग भी बतौर सदस्य शामिल है।
तुरंत मदद को तैयार
लायंस क्लब भिलाई के अध्यक्ष विपिन बंसल ने बताया कि ट्विनसिटी में ऐसी कई संस्था हैं जो सांस्कृतिक कार्यक्रम, गेम व अन्य स्पर्धाओं का आयोजन करते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि लायंस क्लब भी सांस्कृतिक कार्यक्रम, बच्चों व महिलाओं के लिए विभिन्न स्पर्धाओं का समय समय पर आयोजन करता है, लेकिन यह संस्था सभी संस्थाओं से हट कर कुछ अन्य काम भी करती है और वह है तुरंत मदद करो। इस अभियान के तहत संस्था के लोग कमजोर व असहाय लोगों के साथ सड़क दुघर्टना के वक्त मदद, रक्तदान जैसे कार्य तत्काल करते हैं ताकि प्रभावितों को तुंरत उपचार के साथ लाभ मिल सके। उन्होंने कहा कि कई बार सड़क दुघर्टना में घायल लोगों को मदद न मिल पाने के कारण अपनी जान गंवानी पड़ती है। उन्होंने बताया कि जब से यह अभियान शुरू हुआ है तब से यह संस्था कई लोगों की मदद कर चुकी है।
दिया हाथों को काम
नूतन संगवारी महिला जन कल्याण समिति पिछले ७ सालों से कमजोर व असहाय महिलाओं के लिए रोजगार दिलाने का काम कर रही है। समिति की अध्यक्ष अनिता अग्रवाल ने बताया कि वर्तमान समय में कम पढ़ी-लिखी महिलाओं को रोजगार नहीं मिल पाता है, ऐसे में समिति ने २२ से २५ महिलाओं को भिलाई-दुर्ग में रोजगार दिया है। उन्होंने कहा कि समिति का उद्देश्य ही यही है कि जिन लोगों को रोजगार नहीं मिल पाता है उनकी मदद करना। समिति की ओर से कामकाजी महिलाओं के मनोरंजन के लिए सांस्कृतिक व विभिन्न स्पर्धाओं का आयोजन किया जाता है। ताकि महिलाओं को काम के बीच में भी एंजाय करने का मौका मिल सकें।

डाउनलोडिंग जरा संभलकर

इन दिनों फोटो डाउनलोडिंग के जरिए वायरस आईडी हैक होने के मामले सामने आ रहे हैं। इसे बाइंडर प्रोग्राम नाम दिया गया है। इस प्रोग्राम के माध्यम से फोटो अपलोड करने के साथ वायरस एक्टिव हो जाता है और इससे आपका आईडी हैक किया जा सकता है। शेखर झा :-
केस-१
सेक्टर-६ निवासी दीपक साहू ने ३ सितंबर को अपने दोस्त के फेसबुक आईडी से एक हॉलीवुड हीरोइन की फोटो को शेयर किया। शेयर करने के कुछ देर बार अचानक कम्प्यूटर बंद हो गया और फिर सिस्टम काफी धीरे चलने लगा। उसने अपनी आईडी को फिर से खोला तो आईडी हैक हो चुकी थी।
चेंज हुआ फोटो
केस-२
स्मृति नगर निवासी संतोष सिंह ने ५ सितंबर को डेस्कटॉप के लिए एक बॉलीवुड हीरोइन के फोटो को डाउनलोड किया। फोटो के डाउनलोड होने तक किसी भी तरह की दिक्कत नहीं हुई और उन्होंने उस फोटो को डेस्कटॉप पर शेव कर लिया। जब उन्होंने दोबारा सिस्टम खोला, तो उनका डेस्कटॉप का फोटो चेंज हो गया था।
युवा इन दिनों सोशल नेटवर्किंग पर ज्यादा समय बिता रहे हैं। इस दौरान युवा फोटो को दोस्तों के साथ शेयर करने के लिए मेल में अपलोड करते हैं और इसी अपलोडिंग के दौरान आपकी आईडी हैक हो जाती है। हालांकि आईडी के हैक होने का पता युवाओं को तुरंत नहीं चल पाता है, लेकिन कुछ समय बाद आईडी अपने आप बंद हो जाती है। कुछ ऐसा ही ट्विनसिटी के रमेश देवांगन के साथ पिछले दिनों हुआ। वह दोपहर के समय अपने फे सबुक अकाउंट पर बॉलीवुड व हॉलीवुड के एक्टर्स का फोटो अपलोड कर रहे थे। शाम को जब उन्होंने फेसबुक पर साइन इन करना चाहा तो पता चला कि उसका पासवर्ड सही नहीं है। किसी ने उसकी आईडी हैक कर ली। ट्विनसिटी में हो रही इस तरह की घटनाओं को देखते हुए सोशल नेटवर्किंग के यूज करने वालों को सजग होना होगा। वहीं शहर के आईटी के जानकारों का मानना है कि कई बार युवा अच्छी फोटो देखकर उसको अपनी आईडी के साथ शेयर करने की कोशिश करते है, लेकिन उनको यह पता नहीं रहता है कि फोटो शेयर करने से आईडी हैक हो सकती है।
हर फोटो न करें अपलोड
इस तरह की समस्या उन लोगों को आ रही है जो फेसबुक या फिर कोई अन्य सोशल नेटवर्किंग साइट का इस्तेमाल कर रहे हैं। अच्छे फोटो अपलोड करना कुछ लोगों की आदत में शुमार होता है। किसी भी सर्च इंजन से फोटो सर्च करने के बाद वह डाउनलोड कर लेते हैं और इसे फेसबुक में अपलोड कर देते हैं, लेकिन हम ये नहीं जानते कि यह फोटो कम्प्यूटर के साथ ही साथ आपके फेसबुक अकाउंट को नुकसान पहुंचा सकता है।
की-लॉगर्स देता है सारी जानकारी
साइबर एक्सपर्ट सनी वाघेला ने बताया बाइंडर प्रोग्राम के साथ ट्रोजन वायरस होता है। इंटरनेट से फोटो डाउनलोड करने पर यह कम्प्यूटर में एक्टिव हो जाता है। वह उस सिस्टम पर होने वाली सारी एक्टिविटी की जानकारी हैकर को देता रहता है। इसमें होने वाले की-लॉगर्स के कारण की-बोर्ड, माउस से हम जो भी इनपुट करते हैं वह जानकारी हैकर्स तक पहुंचाता है। जब हम किसी भी सोशल नेटवर्किंग साइट पर साइन इन करते हैं तो हैकर हमारा पासवर्ड जान उसे हैक कर सकता है। इसे एंटी वायरस भी स्कैन नहीं कर पाता।
ऐसे बच सकते हैं हैकिंग से
लाइसेंस वाले एंटी वायरस का ही उपयोग करें।
डाउनलोडिंग के बाद सिस्टम का सेटअप चेककर लें कि कहीं उसमें अनजान प्रोग्राम तो रन नहीं हो रहा है। ऐसा हो रहा है तो एक्सपर्ट से सलाह लें।
फोटो डाउनलोड कर रहे हैं उसकी बेसिक इंफोर्मेशन की जांच कर लें।
ई-मेल पर आने वाले अनजान लिंक पर क्लिक न करें।
अच्छी फोटो को देखकर अपलोड या डानउलोड न करें।
हैक हुई आईडी

बढ़ा पुरानी बाइक का क्रेज

शेखर झा
शौक को पूरा करने के लिए युवा क्या नहीं करते हंै। इन दिनों ट्विनसिटी के युवाओं को पुरानी बाइक भा रही है। वो भी क्यों नहीं। क्योंकि महंगी गाड़ी कम रेंज में उपलब्ध है। वहीं युवाओं को देखें तो कोई प्लसर तो कोई एवेंजर चलाना शौकिन रखते हंै। उन शौक को पूरा करने के लिए युवा सकेंड हैंड बाइक की खरीदी ज्यादा कर रहे है। शहर के कई जगहों पर पुरानी बाइक मिल रहे हंंै। उन बाइक दुकान में इन दिनों युवाओं की भीड़ सुबह से शाम तक देखने को मिल रहा है। उस दुकान में सभी तरह की गाड़ी व कंडिशन फिट बाइक मिल रहा है। पुरानी गाड़ी की खरीदी करने के बाद युवा अपने मन मुताबिक उसका मौडीफाई कराकर फिर बाइक चलाते है।
शौक होता है पूरा
मध्यम वर्ग वाले महंगी गाड़ी खरीदी करने में असमर्थ रहते है। क्योंकि उनके पास पर्याप्त रकम नहीं रहता है। और इंश्योरेंश के चक्कर में न पडऩे के कारण पुरानी बाइक की खरीदी कर लेते है। वहीं शहर में इस सुविधा के उपलब्ध होने से सभी वर्ग के युवा अपने मन मुताबिक बाइक खरीदी करने का अवसर मिल जाता है।
रहता है रेंज कम
इन दिनों तो कोई भी बाईक चालीस से पैतालीस हजार से कम में नहीं मिल रही है। अगर इंश्योरेंस पर नई बाईक लेते हंै तो बाईक के दाम के अलावा और दो से चार हजार रुपए देना पड़ता है। उन सभी को देखते हुए युवा पुराने बाइक की खरीदी ज्यादा कर रहे है। कई बार ऐसा भी होता है कि उन दुकानों पर लोगों को चार से पांच महीने चली गाड़ी भी उपलब्ध हो जाती है।
चेक करे फिर ले गाड़ी
अगर आप पुरानी गाड़ी की खरीदी कर रहे है तो खरीदी करने से उस गाड़ी के कागजात की पूरी तरह से जांच पड़ताल कर लें। साथ ही गाड़ी के इंजन, बॉडी व अन्य सभी चीजों के बारे में बारीकी से जांच कर लें। उसके बाद ही गाड़ी की खरीदी करें। साथ ही कई गाडिय़ा ऐसी भी रहती है जो आए दिन बिगड़ती रहती है। गाड़ी लेने से पहले किसी जानकार व्यक्ति से उस गाड़ी की चेकअप करा लें।
यहां मिल रही है गाड़ी
कुछ साल पहले पुरानी बाइक की खरीदी करने के लिए लोगों को दूसरे प्रदेश या राजधानी रायपुर जाना पड़ता था। मगर अब लोगों को शहर मे कई ऐसे जगह हैं जहां पुरानी बाइक उपलब्ध है। शहर के महात्मा गांधी चौक, तीन दर्शन मंदिर व अन्य कई जगहों पर पुरानी बाइक मिल रही है। उन दुकानों में लोगों को कम से कम रेंज पर मिल रहा है।

परदेस में हैं मेरे भईया

पूजा पटेल
राखी रेशम की डोर से बंधा एक पवित्र रिश्ता है। इस रिश्ते में अटूट प्यार छुपा है। राखी के अटूट बंधन को लेकर सदियों से कई गाथाएं चली आई हैं। द्रौपदी ने अपनी रक्षा के लिए भगवान कृष्ण को राखी बांधी थी और सदियों से ये रक्षा सूत्र वीर योद्धाओं की कलाई पर बंधता आया है और बंधता रहेगा चाहे भाई पास हो या दूर। भाई कि कलाई में बंधने वाला धागा बहुत अहम होता है, जहां बहन भाई की रक्षा के लिए यह रक्षा सूत्र बांधती है वहीं भाई भी बहन की रक्षा का वचन देता है। जब भाई किसी वजह से घर से दूर चला जाता है और राखी पर घर नहीं आ पाता है, तो बहन अपने अरमानों को रेशम की डोरी से सजाकर प्यार का अटूट बंधन भेज देती है बंद लिफाफे में।
बचपन के छोटे-मोटे झगड़े और पल में मिल जाना एक दूसरे से रुठना-मनाना सब कुछ दूर भले है पर सभी को यादों और तस्वीरों में समेटकर रखा हुआ है। बहन का मन तो करता है कि कोई जादू की छड़ी होती तो उस पल को वापस ले आती। इन यादों को याद कर कभी-कभी आंखों में आंसू भी आ जाते हैं पर भाई की बढ़ती प्रगतियों को देखकर अरमानों को मन के अंदर ही दबा लेती हैं, जब वह भाई को राखी के साथ पत्र भेजती हैं तो लिख देती हैं यहां सब कुशल है पर सच तो कुछ और ही होता है। और राखी भेजते समय बस यही सोचती हैं कि क्या हुआ जो राखी मेरे हाथ से न बंध पाई पर इस राखी में मेरी दुआएं और प्यार छुपा है, जिसे भले ही भाई तुम खुद अपने हाथों से बांधो पर ये राखी जब तक बंधी रहेगी मेरी दुआओं और प्यार का एहसास दिलाती रहेगी। ट्विनसिटी में भी ऐसी कई बहन हैं जो कई वर्षों से दूर देश में रह रहे अपने भाई रक्षा सूत्र भेज रही हैं।
सात संमदर पार है भाई
देशमुख परिवार बोरसी दुर्ग के सबसे छोटे बेटे श्रीकांत देशमुख पिछले १५ वर्षों से अमेरिका मे रह रहे हैं। वे ब्यूनस आयरस में इंडियन कपड़ों का बिजनेस करते हैं। इस दौरान वे सिर्फ २ राखियों पर ही अपनी बहन से मिल पाए हैं। सुमन वर्मा बताती हंै कि पिछली राखी पर तीनों भाई साथ थे। इस बार वे नहीं आ रहे हैं, इसलिए वे राखी पोस्ट कर रही हैं। सुमन भाई को याद करते हुए कहती हैं कि भाई और उनक ी बहुत लड़ाई होती थी पर प्यार भी उतना ही ज्यादा था। कभी उन्हें भईया नहीं बुलाया एक बार भईया बुलाया तो कहने लगे तू मुझे नाम से ही बुलाया कर। सुमन बताती है कि श्रीकांत भईया मेरी राखी सालभर तक बांध कर रखते हैं। ३ भाई और ३ बहनों में दोनों बड़ी बहन सोभा व सुम्मति भी अमेरिका में रहती हैं जो इंडिया में रह रहे दो भाइयों संजय व विवेक के लिए अपने हाथों से बनी राखी भेजती हैं।
बहुत मिस करती हंू
दुर्ग शंकर नगर की गीता टांक भी अपने दोनों भाईयों को राखी भेजती हैं। गीता ने अपनी पसंद की राखी अपने भाइयों को पोस्ट भी कर दी है। दोनों भाई तिपेश और देवेन्द्र इंजीनियर हैं व जॉब के चलते हैदराबाद व गुणगांव में रह रहे हैं। गीता राखी पर अपने भाइयों को बहुत मिस करती है। गीता कहती है कि छोटा भाई देवेन्द्र बहुत शरारती है हम दोनों भाई-बहन स्पेशल ओकेशन पर किचन में कुछ न कुछ बनाते थे। तिपेश भाई के साथ तांगे में मार्केट से घर आने की बहुत सी यादे हैं। जॉब के चलते दोनों भाई राखी पर नहीं आ पाते पर दिवाली में दोनों भाई ढेर सारे गिफ्टों के साथ आकर सारी कसर पूरी कर देते हैं।
जिद्दी है पर सबका लाडला भी
गौतम परिवार दुर्ग के सबसे छोटे बेटे भावेश गौतम सब इंसपेक्टर हैं, जिनकी पोस्ंिटग दंंतेवाड़ा है। ६ बहनों अदिती, ज्योति, छमा, रमा, बिंदू, गायत्री का यह सबसे छोटा भाई सबका लाडला है। दंतेवाड़ा पोस्ंिटग की वजह से पिछले दो वर्षों से राखी पर नहीं आ पाया है। इसलिए सभी बहनें अपनी पसंद की राखियां भाई को पोस्ट कर रही हैं। बहनों का कहना है कि भाई सबसे छोटा होने की वजह से थोड़ा जिद्दी है पर सबसे जिम्मेदार भी है राखी में भाई को सारा परिवार बहुत मिस करेगा। बहन ज्योति बताती हैं कि भाई को दिवारों पर अपना नाम लिखने का बहुत शौक था इसी शैतानी के चलते उसे डांट पड़ती थी उसकी ये शैतानी याद कर हम सब बहनें आज भी हंस पड़ती हैं।

नेता जी सुभाष चंद्र बोस की ऐसी दुर्गति देखी नहीं होगी आपने!

ब्रज किशोर दुबे
देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए भारत के नौजवानों को आजादी की लड़ाई में कुदने को प्रेरित करने के लिए तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे अजादी दूंगा का नारा देने वाले नेताजी को आजादी के महज 64 साल ही बीतने पर हमलोगों ने उन्हें भूला दिया।
याद में महज खानापूर्ति
जन्म तिथि 23 जनवरी को या पूर्णतिथि 18 अगस्त को याद कर महज खानापूर्ति कर देते है। नहीं तो यह दृश्य देखने को नहीं मिलती। आरा के रमना मैदान के पूर्वी कोने व महिला कॉलेज रोड़ पर स्थित उनकी प्रतीमा का हाल देख कर आँखे शर्म से झुक जाती है। ऐसा नहीं कि यह दृश्य अकेले मुझे देखने को मिली। इस रोड़ से शहर के तमाम सरकारी बाबूओं से लेकर समाज के बुद्धिजिवि नागरीकों का आना-जाना लगा रहता है। शहर के महत्वपूर्ण होटल इसी रोड़ पर स्थित है, महज 100 मीटर की दूरी पर सिविल कोर्ट और 10 मीटर दूरी पर शहर का सबसे महत्वपूर्ण सभागार नागरी प्रचारणी है, तो 5 मीटर की दूरी पर भीमार्ट मौल है।
नेताजी की वीरगाथा
23 मार्च 1897 को उडिसा के कटक में जन्म लेने वाले सुभाष चंन्द्रबोस विचारों से प्रभावित होकर जर्मनी के शासक हिटलर ने नेताजी कह कर संबोधित किया। यही नहीं राष्ट्रपिता महात्मागांधी के बुलाने पर कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लेने वाले राष्ट्रभक्त नेजाजी ने 1938 और 1939 में कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किये गये। लेकिन नेताजी ने माना कि अंग्रेजों से भारत को अजाद कराने के लिए अहिंसा का रास्ता छोडऩा होगा। इस विचार को मूर्त रूप देने के लिए 17 जनवरी 1941 नेताजी जपान की यात्रा पर चले गये। 21अक्टूबर 1943 ई. को उन्होंने ने जपान सरकार के सहयोग से सिंगापुर में अजाद हिन्द फौज सरकार का गठन किया। जो भारत के पूर्वी भागों पर हमला कर भारत की जमी को अंग्रेजो से मुक्त कराया। इसी दौरान माना जाता है कि 18 अगस्त 1945 वायुयान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। तब से लेकर आज तक उनकी मृत्यु कब और कहाँ हुई यह जांच का विषय ही रह गया है।

गुरुवार, 19 जनवरी 2012

वेबसाइट से फैकल्टी संबंधी आर्डनेंस गायब

सीएसवीटीयू में चयन समिति बनाने में गड़बड़ी, एआईसीटीई के मापदंडों का नहीं होता पालन, इंजीनियरिंग कॉलेज संचालक करते हैं मनमानी
नारद योगी
प्रदेश में स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय(सीएसवीटीयू) की स्थापना इंजीनियरिंग शिक्षा के विकास के लिए की गई थी। पिछले कुछ वर्षों में यूनिवर्सिटी में जिस तरह के फर्जीवाड़े और अनियमितताएं हुई हैं, उससे तकनीकी शिक्षा का विकास कम व्यवसायीकरण ज्यादा हुआ है। कॉलेज संचालकों को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए यूनिवर्सिटी ने संबद्धता, प्रवेश में फर्जीवाड़ा के अलावा फैकल्टी चयन में भी कोई पारदर्शिता नहीं बरती। इसका सबूत है सीएसवीटीयू की वेबसाइट से फैकल्टी चयन के लिए बनी आर्डिनेंस-१९ का गायब होना। यूनिवर्सिटी के अधिकारियों के मुताबिक फैकल्टी की नियुक्ति आर्डिनेंस-१९ में निर्धारित नियमों के अनुसार गठित चयन समिति के माध्यम से की जाती है, लेकिन वेबसाइट में आर्डिनेंस-१९ में चयन समिति की जगह एमबीए पाठ्यक्रम में प्रवेश संबंधी जानकारी दी गई है। इससे अधिकारियों के बयान की सच्चाई का पता चलता है। यूनिवर्सिटी से संबंधित २२ आर्डिनेंस वेबसाइट पर हैं। इनमें से फैकल्टी चयन संबंधी प्रक्रिया का एक भी नहीं है। इससे साफ है कि यूनिवर्सिटी प्रबंधन फैकल्टी नियुक्ति प्रक्रिया के बारे में बताना नहीं चाहता। सूत्रों के मुताबिक यूनिवर्सिटी की स्थापना से लेकर अब तक फैकल्टी चयन में कॉलेज संचालकों को पूरी छूट दी गई। और अखिल भारतीय तकनीकी परिषद(एआईसीटीई) के नियम के विपरीत फैकल्टी चयन किया गया। यही वजह है कि फैकल्टी चयन संबंधी आर्डिनेंस को वेबसाइट डाला नहीं गया है।
क्या है आर्डिनेंस-१९
विश्वविद्यालय अधिनियम १९७३ के अनुसार देश भर में विश्वविद्यालय स्थापित किए जाते हैं। इन्हें संचालित करने के लिए संबंधित राज्य शासन विवि अधिनियम १९७३ का पालन करते हुए अध्यादेश जारी करती है। इन्हीं से विश्वविद्यालाय संचालित होते हैं। सीएसवीटीयू के लिए भी छगविवि अधिनियम बनाया गया है। इसके तहत अनेक आर्डिनेंस बनाए गए हैं। इनमें से आर्डिनेंस-१९ सीएसवीटीयू से संबद्ध इंजीनियरिंग कॉलेजों में फैकल्टी की नियुक्ति करने के लिए चयन समिति बनाने के बारे में बताता है। समिति का गठन व फैकल्टी के चयन में आर्डिनेंस में दिए दिशा-निर्देशों का पालन करना आवश्यक होता है।
सीएसवीटीयू के २२ आर्डिनेंस
यूनिवर्सिटी के कामकाज के लिए २२ आर्डिनेंस बनाए गए हैं। आर्डिनेंस नंबर -१ में इंजीनियरिंग कॉलेजों को संबद्धता देने, २ में छात्रों के कॉलेजों में प्रवेश, यूनिवर्सिटी टीचिंग डिपार्टमेंट, छात्रों के ट्रांसफर प्रक्रिया आदि, ३ में विभिन्न फैकल्टी डिपार्टमेंट, ४ में छात्रों का नामांकन, ५ में परीक्षा आयोजन, ६ में परीक्षा संबंधी, ७ में फैलोशिप व स्कालरशिप, ८ में परीक्षा फीस, ९ मेें परीक्षकों को टीए व डीए संबंधी, १० में पीएचडी, ११ में रिसर्च के द्वारा आर्किटेक्चर में मास्टर डिग्री, १२ में एमई व एमटेक के बारे में, १३ में फुल टाइम एमसीए कोर्स, १४ में बीई में पीजी, १५ में पांच वर्षीय बीआर्क, १६ में बी फार्मा, १७ त्रिवर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम, १८ में फार्मेसी में दो वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम, १९ में एमबीए पाठ्यक्रम, २० में पार्ट टाइम बीई पाठ्यक्रम, २१ में पार्ट टाइम इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और २२ में एप्लाइड जियोलॉजी में मास्टर डिग्री संबंधी जानकारी हैं।
चयन समिति के सदस्य
यूनिवर्सिटी की फैकल्टी चयन समिति में कुलपति या उनका प्रतिनिधि, दो विषय विशेषज्ञ और संबंधित इंजीनियरिंग कॉलेजों के सोसाइटी अध्यक्ष शामिल होते हैं। सूत्रों के मुताबिक ऐसे कई मामले हैं, जिनमें जिस विषय की फैकल्टी के चयन के लिए साक्षात्कार कार्यक्रम आयोजित किया जाता था, उस चयन समिति में संबंधित विषय के विशेषज्ञ शामिल नहीं होते थे। सिविल वालों के चयन समिति में मैकेनिकल वाले और मैकेनिकल वालों के लिए बनी चयन समिति में इलेक्ट्रीकल के विशेषज्ञ शामिल होते थे।
वर्सन
फैकल्टी चयन में पूरी पारदर्शिता बरती जाती है। नियुक्तियां पहले की हैं। वर्तमान में एआईसीटीई के नियमों के अनुसार चयन किया जाएगा। आर्डिनेंस की जांच की जाएगी।
-डॉ अशोक कुमार दुबे, रजिस्ट्रार, सीएसवीटीयू, भिलाई

शनिवार, 14 जनवरी 2012

कम पानी है बीमारी की जड़

ट्विनसिटी में बढ़ रही है कम पानी पीने वाले मरीजों की संख्या
गर्मी में लोग पानी खूब पीते हैं, लेकिन जैसे ही ठंड आती है लोग पानी कम पीना शुरू कर देते हैं, जिससे शरीर में पानी की मात्रा कम हो जाती है और यही कारण उनकी बीमारी का सबब बन जाता है। ट्विनसिटी में भी ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है जो कम पानी पीने की वजह से बीमार पड़ रहे हैं।
शेखर झा
ठंड में ज्यादा पानी पीना फायदेमंद है, लेकिन ठंड की वजह से लोग ज्यादा पानी नहीं पी पाते हैं। चिकित्सक बताते हैं कि कम पानी पीने वालों में कामकाजी व यंगस्टर्स की संख्या ज्यादा है। क्योंकि सुबह से शाम तक ऑफिस और स्कूल-कॉलेज के चलते वे कम पानी पीते हैं, जिससे शरीर में पानी की कमी हो जाती है और इससे पेट में दर्द, जलन, किडनी में तकलीफ व अन्य तरह की दिक्कतें होनी शुरू हो जाती हैं। इन दिक्कतों से खुद को दूर रखने के लिए लोगों को शरीर के अनुसार पर्याप्त पानी पीना चाहिए। डॉक्टर्स का मानना है कि ज्यादातर शहरवासी शरीर के लिए आवश्यक मात्रा से कम पानी पी रहे हैं, जिससे उनके शरीर में एसिडिटी, चमड़ी में सूखापन, बालों में डेंड्रफ सहित किडनी की समस्या बढ़ रही है। एक्सपर्ट की मानें तो सर्दी हो या बारिश रोज दो लीटर और गर्मी में पांच लीटर पानी पीना ही चाहिए।
रोज आते हैं पांच मरीज
ठंड का सीजन जैसे ही आता है, वैसे ही हॉस्पिटल में पानी कम पीने से होने वाली बीमारियों से ग्रसित मरीजों की संख्या बढऩे लगती है। शासकीय अस्पताल में प्रत्येक दिन एसिडिटी, पेट में दर्द और जलन, उल्टी-दस्त बीमरियों से ग्रसित औसतन ५ मरीज आ ही जाते हैं।
हो सकता है स्टोन
सुपेला स्थित शासकीय हॉस्पिटल के प्रभारी गोपीनाथ ने बताया कि अगर शरीर को पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिला, तो पथरी होने डर रहता है। उन्होंने कहा कि ठंड में कम से कम लोगों को दो लीटर पानी पीना चाहिए। जिससे पथरी होने का डर नहीं रहता है। शरीर को पर्याप्त मात्रा में पानी मिलेगा, तो किसी भी तरह की बीमारी नहीं होगी। साथ ही उन्होंने लोगों को ठंड में गुनगुना पानी पीने की सलाह दी।
जानें कितना जरूरी पानी
डॉक्टर्स का मानना है कि अगर आप शरीर में पानी की पर्याप्ता मात्रा को जानना चाहते हैं, तो सबसे पहले अपना वजन तौल लें। उसके बाद अपने वजन को तीस से विभाजित कर दें। यदि वजन ६० किलोग्राम है तो इसे तीस से भाग देने पर २ आएगा। यदि आपका वजन ७५ किलोग्राम है तो उत्तर २.५ आएगा। इस तरह आप अपने वजन को ३० से भाग दें और जो भी उत्तर आए उतना ही पानी पिएं।
होता है नियंत्रण
० खाना खाने से आधा घंटा पूर्व और एक घंटा बाद तक पानी नहीं पीना चाहिए।
० दिनभर में अधिक से अधिक पानी पिएं।
० पानी पीने से वजन पर भी नियंत्रण में रहता है।
० पानी को फिल्टर करके या उबाल कर ही पिएं, क्योंकि दूषित पानी से लीवर और गुर्दों के रोग हो जाते हैं।
० पानी पीने में यदि परेशानी होती है, तो पानी का संतुलन शरीर में बनाए रखने के लिए अच्छी मात्रा में फल खाएं।

मुन्नी, शीला के बाद चमेली की बारी

पव्वा भले ही चिकनी चमेली ने चढ़ाया हो, लेकिन इसका नशा हर किसी के सिर चढ़कर बोल रहा है। मोबाइल से लेकर लेपटॉप, टीवी से लेकर यू-ट्यूब तक चिकनी चमेली के प्रशंसक देखने को मिल रहे हैं। फिल्म के आने से पहले ही यह गाना इतना हिट हो गया है, कि हर तरफ चिकनी चमेली की चर्चाएं सुनने को मिल रही हैं। श्रेया घोषाल की आवाज से कहीं ज्यादा कैटरीना कैफ की अदाओं ने गाने को इस कदर मशहूर कर दिया है कि लोकप्रियता की लिस्ट में यह सबसे ऊपर है।
शेखर झा
पहले मुन्नी फिर शीला और अब चिकनी चमेली लोगों के जुबां पर छा गई है। शहर के टॉकीजों में कुछ दिनों के बाद अग्निपथ की रीमेक लगने वाली है। वहीं इस फिल्म का गाना चिकनी चमेली ट्विनसिटी में धूम मचा रहा है। इस गाने पर बॉलीवुड की बॉर्बी डॉल कैटरीना कैफ की अदाओं ने लोगों का एक अर्से बाद दिल जीता है। गली-मोहल्ले से लेकर लोगों के जुबां तक सिर्फ इसी गानें की धुन सुनने को मिल रही है। इस गाने को यू-ट्यूब पर लाखों लोग देख चुके हैं।
कोंबड़ी पलाली का रीमेक
आने वाली फिल्म 'अग्निपथ में चिकनी चमेली सॉन्ग मराठी फिल्म 'जात्र का गाना कोंबड़ी पलाली का रीमेक है। जिस कदर लोगों को चिकनी चमेली भा रही है। उसी तरह महाराष्ट्र में कोंबड़ी पलाली सॉन्ग लोकप्रिय है। चिकनी चमेली और कोंबड़ी पालाली गाने में बस बोल का फर्क है, वहीं डांस, म्यूजिक व अन्य सभी चीजें करीबन एक जैसी हैं।
पब्लिसिटी का फंडा
पुरानी फिल्मों में एक भी आइटम सॉन्ग नहीं हुआ करता था। क्योंकि पहले इसे संस्कृति से परे माना जाता था। वहीं इन दिनों सभी को लटके-झटके ज्यादा पसंद आते हैं। इसलिए फिल्म मेकर आइटम सॉन्ग के जरिए ज्यादा पब्लिसिटी करते हैं।
श्याम सोनी, फिल्म प्रेमी
नहीं देख सकते फैमिली के साथ
वर्तमान में आने वाली फिल्म और उसके सॉन्ग को फैमिली मेम्बर के साथ बैठकर नहीं देख सकते हैंं, क्योंकि उसमें अश्लीलता कुछ ज्यादा ही दिखाई जाती है। फिल्म डायरेक्टर फिल्म प्रेमियों के च्वाइस के अनुसार ही फिल्म को क्रिएट करते हैं और उसके बाद प्रसारित करते हैंं।
नरेश कुमार, फिल्म प्रेमी

स्टूडेंट्स जुटे एग्जाम के फाइनल टच में

जहां एक ओर स्टूडेंट्स १२वीं परीक्षा को फाइनल टच देने में जुट गए हैं, वहीं कुछ एआईईईई की तैयारी में अभी व्यस्त हो गए हैं। १२वीं परीक्षा के होने के बाद एआईईईई के लिए स्टूडेंट्स के पास लगभग एक महीना बच जाएगा। उसमें अच्छे से एग्जाम का प्रीप्ररेशन कर सकेंगे। २०११ में संपन्न हुए एआईईईई परीक्षा में छत्तीसगढ़ से लगभग २४ हजार स्टूडेंट्स शामिल हुए थे। इस बार परीक्षार्थियों की संख्या बढने की संभावना है।
शेखर झा
इंजीनियरिंग क्षेत्र में करियर बनाने वाले स्टूडेंट्स के लिए एक बार फिर से सुनहरा अवसर है। सीबीएसई की ओर से २९ अप्रैल को ऑल इंडिया इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम(एआईईईई) आयोजित होने वाली है। जिसमें लाखों की तादात में स्टूडेंट्स हिस्सा लेंगे। एग्जाम की डेट जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, वैसे स्टूडेंट्स अपने पढ़ाई को फाइनल टच देने में जुट गए हैं। एग्जाम को दो भागों में लिया जाएगा, जिसमे पहले ऑफलाइन और फिर ऑनलाइन एग्जाम आयोजित होंगे। ट्विनसिटी से भी हजारों की संख्या में स्टूडेंट्स एग्जाम फेश करेंगे। वहीं २०११ में छत्तीसगढ़ से २४ हजार स्टूडेंट्स ने एग्जाम दिया था। इस बार के एग्जाम में स्टूडेंट्स की संख्या और बढ़ सकती हैं। हालांकि देखा जाए, तो एआईईईई से पहले स्कूलों में १२वीं का एग्जाम होगा। उसके बाद ही जाकर स्टूडेंट्स इस एग्जाम में शामिल हो सकेंगे। जहां स्टूडेंट्स अपने स्कूल की परीक्षा की तैयारी कर रहें हैं, लेकिन उसके साथ ही साथ इंजीनियरिंग क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए एंट्रेंस एग्जाम की भी तैयारी कर रहे हैं। इस एग्जाम में स्टूडेंट्स को सही उत्तर देने पर नम्बर तो मिलता ही हैं, लेकिन गलत उत्तर देने पर नम्बर काट लिए जाते हैं। इसलिए स्टूडेंट्स को काफी सावधानी से प्रश्रों को सॉलव करना होता है। मार्च के फस्र्ट विक से एग्जाम के लिए शहर में कई कोचिंग में क्रैश कोर्स शुरू हो जाती है, उसमें स्टूडेंट्स को एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी कराई जाती हैं।
पहले ऑफलाइन फिर ऑनलाइन
एआईईईई के लिए सबसे पहले ऑफलाइन और उसके बाद ऑनलाइन परीक्षाएं होगी।ऑफलाइन २९ अप्रैल को और ऑनलाइन ७ मई से २६ मई तक आयोजित की जाएगी। एग्जाम के परिणाम १५ जून तक घोषित कर दिए जाएंगे। उसके बाद स्टूडेंट्स अपने-अपने रैंक के अनुसार देश के किसी भी इंजीनियरिंग कॉलज में एडमिशन ले सकेंगे।
नेगेटिव मार्किंग से सावधान
इस एग्जाम में गलत उत्तर दिए जाने पर नेगेटिव मार्किंग का प्रावधान है। गलत उत्तर दिए जाने पर एक चौथाई अंक काट लिए जो हैं। इसलिए स्टूडेंट्स को उत्तर देते समय विशेष सावधानी रखनी पड़ती हैं। जिन प्रश्नों को लेकर उन्हें सस्पेंस की स्थिति रहती है, उन्हें छोड़ कर दूसरे प्रश्न बनाने चाहिए। हो सकता है कि बाद में समय मिलने पर उन प्रश्नों पर फिर से एक नजर डाल सकें। वहीं ऑनलाइन में स्टूडेंट्स को एक सेक्शन से दूसरे सेक्शन में जाने की छूट होती है और वे किसी भी प्रश्न पर आसानी से टिक लगा सकते हैं। एक बार सबमिट का बटन दब जाने के बाद दोबारा उसमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता हैं।
शॉर्टकट्स आवश्यक
किसी भी फॉर्मूले पर अपना खुद के शॉटकट तैयार करने चाहिए। यह कार्य तैयारी के शुरुआती चरण में ही किया जाए, तो फायदेमंद साबित हो सकता है। शॉटकट से स्टूडेंट्स प्रश्नों का जवाब जल्दी एवं सही तरीके से दे पाते है। वैसे भी एग्जाम में प्रश्नों को हल करने के लिए कोई विशेष समय नहीं दिया जाता है, लेकिन अपना शॉटकट यूज करते हैं, तो कम समय में अधिक प्रश्नों को हल किए जा सकते हैं।
वर्जन
करना होगा रिवीजन
जो स्टूडेंट्स इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते हैं और एग्जाम देना चाहते हैं, तो उसको १२वीं और एआईईईई को ध्यान में रखकर तैयारी करनी चाहिए। क्योंकि १२वीं एग्जाम के कुछ दिनों बाद एआईईईई के एग्जाम आयोजित होंगे। स्टूडेंट्स ने जितनी तैयारी अभी कर ली है, उसका ही रिवीजन करना चाहिए। स्टूडेंट्स को अब किसी भी तरह का नया कुछ नहीं करना चाहिए, क्योंकि अब उनके पास ज्यादा समय नहीं रह गया है।
- आरके रेड्डी, शिक्षाविद्
कंफर्म के बाद करें टिक
स्टूडेंट्स को १२वीं फाइनल एग्जाम को देखते हुए तैयारी करनी चाहिए। क्योंकि अगर स्टूडेंट्स १२वीं एग्जाम की तैयारी करते हैं, तो उसका फायदा उनको एआईईईई में मिलेगा। जब तक स्टूडेंट्स किसी प्रश्न के उत्तर पर कंफर्म नहीं रहते हैं, तो उनको टिक नहीं करना चाहिए। एग्जाम की तैयारी स्टूडेंट्स को टेस्ट के माध्यम से करनी चाहिए, टेस्ट देने से स्टूडेंट्स को अपनी गलती का पता चलता हैं।
- मोहम्मद सलीम, शिक्षाविद्
ध्यान रखें
० १२वीं और एआईईईई को ध्यान में रखकर तैयारी करना चाहिए
० रिवीजन जरूर करना चाहिए।
० प्रश्न को अपने शॉटकट तरीके से सॉलव करना चाहिए।
० प्रश्न को समझकर हल करना चाहिए।
० जिस प्रश्र को लेकर कंफ्यूड हो, उसको सॉलव नहीं करना चाहिए।
० टेस्ट के माध्यम से करें तैयारी

कहीं भी खरीद सकेंगे आभूषण

ट्विनसिटी बोली हॉलमार्किंग से होगा लोगों को लाभ
शेखर झा
सरकार ने आभूषणों पर हॉलमार्किंग को तो अनिवार्य कर दी हैं, लेकिन शहर के ज्वलेरी शॉप के संचालकों के साथ आम लोगों ने अपनी अलग अलग प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी हैं। हॉलमार्किंग से जहां आम लोगों को सही आभूषण मिलेगे, वहीं मझले और छोटे सराफा व्यापारियों को नुकसान उठाना पड़ेगा। वहीं शहर के बड़े शोरूम्स ने इसका स्वागत किया। भारत सोने का सबसे बड़ा ग्राहक है। कई बार आभूषणों के गुणवत्ता पर सवाल भी उठ चुके हैं। उसको देखते हुए सरकार ने आभूषणों पर हॉलमार्किंग का फैसला लिया हैं। हॉलमार्किंग को आनिवार्य रूप से शुरू होने पर लोगों ने इस फैसलेका स्वागत किया हैं। अब वह जहां से चाहे वहां से आभूषणों की खरीदी कर सकेंगे, क्योंकि अब उनको हर जगह आभूषणों पर हॉलमार्किंग जो मिलेगी। शुक्रवार को शेखर झा ने ट्विनसिटी के ज्वेलर्स व आम लोगों से हॉलमार्किंग को लेकर चर्चा की तो उन्होंने कहा कि हॉलमार्किंग वाकई लोगों के लिए सही है, लेकिन छोटे ज्वेलरी दुकान वालों के लिए नुकसानदायक भी हैं। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में हॉलमार्किंग सेंटर एक ही जगह हैं, जिसको लेकर समय के साथ साथ खर्च भी बढ़ जाएगा। सरकार ने आभूषणों पर हॉलमार्किंग अनिवार्य कर दिया हैं, तो उनको सेंटर भी बढ़ाने होंगे। हॉलमार्किंग वाले आभूषण के लिए लोगों को १० फीसदी अधिक रुपए खर्च करने पड़ेंगे।
व्यापार पर पड़ेगा असर
सरकार ने आभूषणों पर हॉलमार्किंग को अनिवार्यकर दिया हैं। इससे आम लोगों के लिए काफी फायदेमंद हो गया हैं, लेकिन यह छोटे व्यापारियों के साथ व्यापार पर असर देखने को मिलेगा। गहनों की विश्वनीयता पर अब सवाल नहीं उठेंगे।
प्रदीप सोनी, संचालक, प्रदीप ज्वेलर्स
स्वागत करते हैं हॉलमार्किंग का
वैसे तो दुकान में आने वाले कस्टमर को पहले से ही हॉलमार्किंग वाले आभूषण दिए जाते हैं, लेकिन सरकार ने इसको अनिवार्य रूप से लागू करने की बात कहीं हैं, तो उसका हम स्वागत करते हैं। हॉलमार्किंग वाले आभूषण से लोगों को शुद्धता पर कोई शक नहीं होगा।
सुनील जैन, संचालक, सहेली ज्वेलर्स
विश्वसनीयता रहेगी बरकरार
अक्सर सोने चांदी के खरीदी के दौरान लोगों के मन में नकली न हो जाए, उसका डर बने रहता था, लेकिन हॉलमार्किंग के होने से लोगों की विश्वनीयता बरकरार रहेगी। सरकार ने आभूषणों पर हॉलमार्किं ग अनिवार्य कर दिया हैं, जिसके चलते लोग आभूषण की खरीदारी कहीं से भी कर सकेंगे।
प्रेम चंद्राकर, डायरेक्टर, क्षेत्रीय फिल्म
रहेगी आभूषणों की सिक्यूरेटी
सरकार ने जो आभूषणों पर हॉलमार्किंग अनिवार्यकर दिया हैं, यह आम जनता के लिए काफी हद तक ठीक हैं, किसी दुकान में बिना हॉलमार्किंग वाले आभूषण को रिसेल करते हैं, तो सामने वाला मनाकर देता हैं, लेकिन हॉलमार्किंग के होने से आभूषणों की सिक्यूरेटी बढ़ जाएगी।
सपना अवस्थी, हाउस वाइफ

शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

नाटक के जरिए पेश किया बुराइयों को

अगर अजन्मी बेटी बोल पाती तो क्या होता.... चुप कर हम सभी मुंह दिखाने के काबिल ही नहीं रह पाते... मां के गर्भ में खुद को बचाने की गुहार भी नहीं लगा पाती होगी अजन्मी बेटियां... बेचारी को तकलीफ हो होती होगी ना.. मंच पर चल रहे ऐसे संवादों को सुनने के बाद अजन्मी बेटियों के दर्द को लोगों ने जरूर महसूस किया होगा। भिलाई महिला समाज के एनुअल फंक्शन में प्रस्तुति लाइट एंड साउंड शो स्वयंसिद्धा में कुछ ऐसा ही संदेश दिया गया, जिसमें बेटियों को आसामान की ऊंचाइयों को छूटे दिखाया गया है तो दूसरी ओर तीखे व्यंग के जरिए समाज में कन्या भ्रुण हत्या और दहेज जैसी बुराइयों को भी नाटक के जरिए पेश किया गया।

अगर लता मंगेशकर हमारे देश का गौरव है तो सबा और सानिया ने भी देश का मान बढ़ाया है। राष्ट्रपति से लेकर लोकसभा अध्यक्ष तक की कुर्सी पर महिलाएं राज कर रही है. पौराणिक काल में भी लड़कियों को स्वयंवर के जरिए अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार था तो देश की रक्षा के लिए रानी लक्ष्मीबाई और दुर्गावती जैसी विरांगनाओं ने भी अपने प्राणों की आहूति दे दी। इतिहास गवाह है कि कसौटी के हर पैमाने पर महिलाएं खरी उतरी हैं, लेकिन आज भी हमारे देश में कई जगह बेटी पैदा होने पर दुख मनाया जाता है। भिलाई महिला समाज के छ: क्लब ने मिलकर कुछ ऐसी ही कोशिश की जिसमें ये दिखाने की कोशिश की गई कि बेटियों के बिना ये संसार कैसा होगा। सेक्टर 1 स्थित नेहरू कलचर हाउस में हुए इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि भिलाई इस्पात संयंत्र के सीईओ पंकज गौतम एवं अध्यक्षता भिलाई महिला समाज की अध्यक्ष प्रतिभा गौतम ने की। इस मौके पर बीएसपी के ईडी एवं कई आला अधिकारी मौजूद थे।
तुमसे ही तो डरती हूं मां - लाइट एंड साउंड के इस शो में सबसे आकर्षक नन्ही अर्किता का गाया गीत मैं कभी बतलाती नहीं तुमसे ही तो डरती हूं मैं मां.. गीत को सुन लोगों की आंखे नम हो गई। इस गीत के जरिए अर्किता दाम ने अजन्मी बेटी की व्यथा को पेश किया कि बेटी अपनी मां से दुनिया में आने के लिए गुहार लगा रही है। इस गीत में खुद अर्किता ने ही स्टेज पर परफार्मेंस दी।
याद आया इतिहास - 70 मिनट के इस शो में स्टेज पर पौराणिक चरित्र के साथ-साथ रानी लक्ष्मीबाई, दुर्गावती, भगत सिंह मां, कस्तुरबा गांधी के योगदान को दर्शाया गया। इन सारे केरेक्टर्स को निभाने महिलाओं ने पूरे एक महीने तक लगातार प्रेक्टिस कर खुद को उन चरित्र के अनुसार ढाला, इन केरेट्क्टर्स के मंच पर आते ही लगातार तालियां बजती रही।
नाटक में बेटियों का दर्द - आजादी के बाद और इस दौर में बेटियों की कम होती संख्या पर आधारित नाटक में तीखे संवादों और चुटीले अंदाज में यह संदेश देने की कोशिश की कई कि बेटियों के बिना आंगन से लेकर संसार सब सुना है। सिर्फ लड़कों से ही दुनिया नहीं चल सकती। नाटक के पहले हिस्से में बेटियों के पैदा होने और दहेज के लिए किस तरह लड़कियांं जलाई जाती है तो दिखाया गया। अपने अभिनय से चैती, आशावरी, मऊ, पिंकी, ममता ने लोगों तक यह संदेश पहुंचाया कि बेटी घर की शान है। वहीं दूसरे हिस्से में उस दौर की कल्पना की गई कि बेटियों के बिना बेटों की दुनिया भी बेरंग सी है।
मन के मंजीरे ने मोहा मन - नारी शक्ति पर आधारित नृत्य मन के मंजीरे आज खनकरने लगे हैं और तू ही तू... नृत्य भी काफी आर्कषक रहा। इस गीत के जरिए महिलाओं ने अपनी शक्ति और क्षमता का परिचय दिया। वहीं कार्यक्रम के तीसरे हिस्से में भिलाई महिला समाज की उपलिब्धयों को दिखाया गया कि भिलाई महिला समाज के पहले महिलाओं की जिंदगी कितनी बेरंग थी और अब उनकी प्रतिभा को मंच मिल गया। वहीं इन दिनों देश का गौरव रही महिलाओं की छवि भी दिखाने की कोशिश की गई। राजनीति से लेकर संगीत और फिल्मी दुनिया से लेकर खेल की दुनिया में अपना परचम लहराने वाली महिलाओं की उपल्बिधयों को भी गिनाया गया।
सबसे बड़ा शो - भिलाई महिला समाज के इतिहास में यह अब तक का सबसे बड़ा कार्यक्रम था जिसमें एक ही महिला का डॉयरेक्शन, संवाद, वाइस और कंसेप्ट था। मरोदा क्लब की सचिव सोनाली चक्रवती ने बताया कि अब तक के करियर में उनका सबसे बड़ा प्रोजक्ट है, स्वयंसिद्धा के इस लाइट एंड साउंड शो के लिए उन्होंने डेढ़ महीने तक लगातार मेहनत की। कंसेप्ट तैयार करने के बाद उसके संवाद और कलाकारों को अभिनय सिखाने से लेकर उन संवादों को अलग-अलग आवाजों में रिकार्ड करने का सारा कार्य उन्होंने ही किया। वे कहती हैं कि इस ड्रीम प्रोजक्ट को पूरा करने के लिए छ: क्लब की महिलाओं ने उनका साथ दिया।
किया सम्मान - कार्यक्रम के दौरान कार्यक्रम संयोजन के लिए सोनाली चक्रवर्ती और नृत्य संयोजन के लिए इप्शिता मुखर्जी को सीईओं ने सम्मानित किया। इस दौरान भिलाई महिला समाज की पदाधिकारी उपस्थित थीं।

इस श्लेडी दबंग से खौफ खाते हैं अपराधी जानते हैं क्यो?

बिहार में नीतीश कुमार के सुशासन में महिलाओं को काफी तवज्जो मिल रही है। पंचायत चुनावों में जहां बिहार में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। वहीं अब महिला पदाधिकारियों को भी भरपूर जिम्मेदारी दी जा रही है।
ऐसी ही एक महिला पदाधिकारी किम हैं। किम 2008 बैच की आईपीएस हैंए लेकिन उनकी जिम्मेदारी इतनी ज्यादा है कि आप भी कहेंगे कि सच में बिहार विकास की ओर अग्रसर हैए और उसमें महिलाओं की काफी भागीदारी है। पटना पूर्वी की एसपी रही किम फिलहाल तीन जिम्मेदारियां एक साथ संभाल रही हैं। जी हांए आपने सही समझा। किम पटना पूर्वी की एसपी हैं। इसके अलावा वे पटना सीटी और ट्रैफिक विभाग के एसपी का दायित्व भी संभाल रही हैं। उल्लेखनीय है कि यह पहली बार है जब किसी महिला आईपीएस के हाथों में पटना सिटी की कमान सौंपी गयी है। किम इसे बखूबी निभा भी रही हैं। यूं कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इस लेडी दबंग से खौफ खाते हैं अपराधी। ज्ञात हो कि राज्य सरकार ने पिछले साल पटना में तीन आईपीएस को नियुक्त करने का निर्णय लिया था जिसमें किम ;पटना पूर्वीद्धए शिवदीप लांडे ;पटना सीटीद्ध औऱ उपेंद्र कुमार सिंह ;ट्रैफिक एसपीद्ध को नियुक्त किया गया था। पिछले माह लांडे का तबादला अररिया किए जाने के बाद सीटी एसपी का अतिरिक्त प्रभार किम को दे दिया गया था। तत्पश्चात जमुई में नक्सलियों द्वारा सात लोगों की हत्या किये जाने के बाद वहां के एसपी को हटा ट्रैफिक विभाग के एसपी उपेंद्र को जमुई भेज दिया गया। इसके बाद विभाग ने ट्रैफिक एसपी का का अतिरिक्‍त दायित्व भी किम को ही सौंप दिया। अपनी जिम्मेदारी को पुलिस अधीक्षक किम बखूबी निभा रही हैं। शिवनाथ लांडे और उपेंद्र का ट्रांसफर किए जाने के बाद भी उनकी कमी को महसूस नहीं होने दे रही हैं। मूल रूप से उत्तरप्रदेश की रहने वाली आईपीएस किम ने अपनी प्राथमिक शिक्षा लखनऊ से प्राप्त की है। इसके बाद दिल्ली लेडी श्रीराम कॉलेज से ग्रेजुएशन और फिर हिन्दू कॉलेज से पीजी करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से एमण्फिल किया। किम को यूपीएससी में 130वां रैंक आया था।

यूं ही नहीं मरती थी इस श्दबंग सिंघम पर लड़कियांए

पटना के पुलिस अधीक्षक नगर के रूप में शिवदीप लांडे ने सिर्फ 10 महीने ही रहेए लेकिन वे अपने काम से लड़कियों के दिलों पर ऐसे छा गए कि उनके अररिया ट्रांसफर के बाद भी पटना के लोग याद याद कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि इस दबंग सिंघम के काम से प्रभावित युवतियां अब भी उन्हें फोन व एसएमएस कर उनके सामने प्रेम व विवाह का प्रस्ताव भेज रही हैं। इसका सबसे बड़ा कारण ये था कि मुसीबत के वक्त ये एसपी खुद अपराधियों के लिए परेशानी का सबब बन जाता था। तस्वीरों में देखें इस दबंग आईपीएस की दबंगई की तस्वीरेंए जिसने अपराधियों में खौफ पैदा कर दिया था।

सोमवार, 9 जनवरी 2012

सामली गाँव से मॉडलिंग रैम्प तक

राजेश जोशी
सफ़ेद सेक्सी लिबास में ख़ूबसूरत, लंबी और छरहरी वो लड़की एक उतनी ही आलीशान कार के पास खड़ी थी. आत्मविश्वास से भरी मुस्कान बिखेरते हुए वो कार देखने आ रहे लोगों का स्वागत कर रही थी. उसमें और वहाँ मौजूद दूसरी मौजूद लड़कियों में बहुत फ़कऱ् नहीं था, सिफर् इस बात के कि ये लड़की उत्तर प्रदेश में मुजफ़्फ़ऱनगर क़स्बे के पास सामली गाँव की रहने वाली है. मीनाक्षी बालियान ने गाँव में ही रहकर पढ़ाई की और वहीं से मॉडलिंग की दुनिया में प्रवेश किया. वो बताती हैं कि उनके पिता किसान हैं और अब भी खेती करते हैं और उन्हें मीनाक्षी के मॉडलिंग करने पर कोई ऐतराज़ नहीं है. दिल्ली के कार मेले में महँगी देसी-विदेशी कारों के साथ-साथ मीनाक्षी जैसी कई ख़ूबसूरत भारतीय और विदेशी मॉड़ल लड़कियाँ भी आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं. आत्मविश्वास से भरी, फर्ऱाटेदार अँग्रेज़ी बोलने वाली इन मॉडलों में भारत के अलावा रूस, ऑस्ट्रेलिया और कई दूसरे देशों की लड़कियाँ भी हैं. फिर भी लंबी, छरहरी मीनाक्षी में कुछ ऐसा था कि मैं बेसाख़्ता उनके पास चला गया और अँग्रेज़ी में पूछा - आप कितनी देर से यहाँ खड़ी हैं? मीनाक्षी कहती हैं कि मॉडलिंग के करियर में वो कोई भी तरीक़ा अपना कर आगे नहीं बढऩा चाहतीं. पहले कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद उसने मुस्कुरा कर हिंदी में जवाब दिया -- एक घंटा. जब चारों ओर करोड़ों की आलीशान कारों की नुमाइश लगी हो, जिन्हें देखने
के लिए रतन टाटा जैसे उद्योगपति, इरफ़ान पठान जैसे क्रिकेट खिलाड़ी और कटरीना कैफ़ जैसी स्टार पहुँची हुई हों तो एक ग्लैमरस मॉडल से अँग्रेज़ी में पूछे गए सवाल का जवाब हिंदी में सुनना आपको अचकचा देता है.
मेरी दिलचस्पी बढ़ी तो मैंने बातचीत भी आगे बढ़ाई. प्रस्तुत हैं इस बातचीत के कुछ अंश:


आप कब से मॉडलिंग में हैं?

डेढ़ साल.

आप दिल्ली की रहने वाली हैं?

नहीं. मैं उत्तर प्रदेश में मुजफ़्फ़ऱनगर की रहने वाली हूँ.

तो मुजफ़्फ़ऱनगर ख़ास में रहती हैं या कहीं आसपास?

मैं सामली गाँव की हूँ.

वहीं के तो किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत भी थे?

वो सिसौली है. सामली के पास ही है. सामली, सिसौली.. भौरा.. ये सब आस-पास ही हैं
मॉडलिंग में आपको कितना संघर्ष करना पड़ा?
मुझे ज़्यादा स्ट्रगल नहीं करना पड़ा. जब मैं मुजफ़्फ़ऱनगर में रहती थी तभी से मेरे पास ऑफऱ आने शुरू हो गए थे. मॉडलिंग की दुनिया तो बहुत चकाचौंध से भरी है. दिखावा बहुत है. अँग्रेजिय़त भरी हुई है. आप कभी ख़ुद को मिसफि़ट नहीं पातीं? नहीं, नहीं, नहीं. जब मैंने शुरुआत की थी तो मुझे लगा था कि यहाँ पर (मॉडलिंग की दुनिया में) सभी लोग अँग्रेज़ी बोलते हैं, हिंदी कम चलती है. लेकिन जब मैं मीटिंगों में जाती थी तो इस कॉनफिड़ेंस के साथ जाती थी कि मुझे पता है कि मॉडलिंग क्या होता है -- रैम्प पर चलना, फ़ोटो शूट करना, पोज़ करना.... तो जो मॉडल्स इंग्लिश बोलती थीं, मैं उनसे आगे होती थी. मैं दिखाती थी कि मैं हिंदुस्तानी हूँ. मुझे हमेशा लगता है कि मैं सुंदर हूँ और मुझमें वो सब कुछ है जो एक अँग्रेज़ी बोलने वाली लड़की में नहीं है.
आपने पढ़ाई कहाँ से की?
"अच्छी भी लड़की होगी तो उसके बारे में पड़ोसी गंदा ही बोलेंगे कि बाहर क्यों भेज रहे हो, मॉडलिंग क्यों करवा रहे हो, मॉडलिंग अच्छी नहीं होती है.... मेरे मम्मी पापा तो बस हमेशा ही बोलते हैं कि हम तो चाहते हैं कि तू कामयाब हो. बस तेरे बारे में कुछ (ग़लत) सुनने को न मिले." वहीं मुजफ़्फ़ऱनगर से. मेरे पापा किसान हैं. उनको मेरे बारे में सब पता है कि मैं मॉडलिंग करती हूँ. अगर वो यहाँ आ भी जाएँ तो भी कोई बात नहीं. जैसे लड़कियाँ घर वालों से छिपाकर मॉडलिंग करती हैं, मेरे साथ ऐसा नहीं है. मुझे पूरी छूट है. मेरे पापा कहते हैं बेटा, इज़्ज़त से रहना. तेरी लाइफ़ है इन्ज्वॉय करो. पर कभी ऐसा न हो कि लोग कहें कि छोटे से गाँव से लड़की आई है और उसने ग़लत काम किया ताकि हमारी इज़्ज़त पर आँच आए.
काफ़ी समझदारी की बात है.
ये मुझे मेरे मम्मी पापा से मिला. पड़ोस तो आप जानते ही हैं कैसा होता है. अच्छी भी लड़की होगी तो उसके बारे में पड़ोसी गंदा ही बोलेंगे कि बाहर क्यों भेज रहे हो, मॉडलिंग क्यों करवा रहे हो, मॉडलिंग अच्छी नहीं होती है.... मेरे मम्मी पापा तो बस हमेशा ही बोलते हैं कि हम तो चाहते हैं कि तू कामयाब हो. बस तेरे बारे में कुछ (ग़लत) सुनने को न मिले.
तो मॉडलिंग के करियर में आप कहाँ तक पहुँचना चाहती हैं.
मैं कोई दिमाग़ी टेंशन नहीं लेती. इन्ज्वॉय ज़्यादा करती हूँ. मेरे साथ ऐसा नहीं है कि मुझे बहुत ऊपर तक पहुँचना है... मॉडलिंग ही कर रही हूँ, यही करूँगी. लेकिन ऊपर पहुँचने के लिए कोई ग़लत काम नहीं करूँगी. मैं बहुत सारी चीज़ें कि़स्मत पर छोड़ देती हूँ.

"जब मैंने शुरुआत की थी तो मुझे लगा था कि यहाँ पर (मॉडलिंग की दुनिया में) सभी लोग अँग्रेज़ी बोलते हैं, हिंदी कम चलती है. लेकिन जब मैं मीटिंगों में जाती थी तो इस कॉनफिड़ेंस के साथ जाती थी कि मुझे पता है कि मॉडलिंग क्या होता है -- रैम्प पर चलना, फ़ोटो शूट करना, पोज़ करना.... तो जो मॉडल्स इंग्लिश बोलती थीं, मैं उनसे आगे होती थी. मैं दिखाती थी कि मैं हिंदुस्तानी हूँ."
मीनाक्षी बालियान

रविवार, 8 जनवरी 2012

कैद में हैं भगवान, छुड़ाने की जमानत राशि है 45 लाख

ब्रज किशोर दुबे
देश का कोई वीर सपूत मेरा भी जमानत ले लो। कोई मुझे इस जंजीर से छुटकारा दिला दो। ये पुकार किसी मानव का नहीं यह बंधनों को काटने वाले भगवान हनुमान की हो सकती है, क्योंकि वे अपने मंदिर से निकल कर पुलिस थाने के हाजत में बंद हैं। आरा शहर से 15 किलोमीटर उत्तर कृष्णगढ़ थाना क्षेत्र के गुंडी ग्राम में स्थित करीब दो सौ वर्ष पुराना श्री रंग जी के मंदिर में अष्टधातु की 17 मूर्ती विरजमान थी। दक्षिण भारतीय शैली से निर्मित इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि सूर्य की पहली किरण सीधे मंदिर में प्रवेश कर भगवान के चरणों को स्पर्श करती है। जिसे देखने के लिए देश के कोने-कोने के लोग आते रहे है।
मूर्ती की चोरी -
प्राप्त जानकारी के अनुसार सन् 1970 के दशक से इस मंदिर में भगवान की 6 बार मूर्ती चोरी हुई। लेकिन सन् 1994 में जब भगवान हनुमान और बरबर मुनीस्वामी की मूर्ती चोरी हुई तब से भगवान की मूर्ती बरामद होने के बाद आज तक भगवान कृष्णगढ़ थाने के हाजत में ही बंद है।
मंदिर निर्माण के

वंशज - करीब 200 वर्ष पूर्व मंदिर का निर्माण कराने वाले गुंडी ग्राम निवासी बाबू विष्णुदेव नारायण सिंह के पाँचवें पिढ़ी के वंशज बबन सिंह ने बताया कि 1994 से पहले मंदिर के सुरक्षा जिला प्रशासन के जिम्मे थी। लेकिन सन् 1994 में मूर्ती चोरी जाने के बाद जिलाप्रशासन ने इसकी जिम्मेवारी लेने से इंकार कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट के द्वारा जारी आदेश में भगवान की कीमती मूर्ती के जमानत लेने के एवज में 45 लाख रूपये का बांड भरना था
। वहीं उन्होंने बताया कि पैसे और सुरक्षा के अभाव में मई 2010 को मंदिर बाबा भगवान राम ट्रस्ट को दान दे दिया। वहीं ट्रस्ट के प्रबंधक बिजेन्द्र सिंह ने बताया कि प्रशासन यदि सुरक्षा की जिम्मेवारी ले तो ट्रस्ट जमानत करा लेगा।
प्रशासन की दलिल - जिला प्रशासन की ओर से ग्रामीण डीएसपी रविश कुमार ने बताया कि जिले में हर मंदिर के लिए अलग से पुलिस जवान देना संभव नहीं है । वहीं उन्होंने कहा कि ग्रामीण लोग एक कमेटी बनाकर भगवान की सुरक्षा की जिम्मेवारी ले तो प्रशासन की ओर से भरपूर सहयोग किया जायेगा।
जमानत में 45 लाख रूपये देने को तैयार है हनुमान मंदिर - इन सब विवादों के बीच धार्मिक न्यास परिसद के अध्यक्ष किशोर कुणाल ने कहा कि हनुमान मंदिर भगवान की जमानत लेने के लिए 45 लाख रूपये भरने की कोर्ट में अर्जी दे चुका है। लेकिन यह तब संभव है जब मंदिर के ट्रस्टी इसके लिए तैयार हो जाय। वहीं उन्होंने कहा कि मैने राज्य सरकार को इस बारे में कई बार पत्र लिख चुका हूं कि मंदिरों की सुरक्षा के बारे में जल्द कोई ठोस पहल नहीं कि गई तो आने वाले समय में एक भी अष्टधातु की मूर्ती नहीं बचेगी।
आम जनता का रोष - मंदिर में भगवान को नहीं होने से आस-पास के ग्रामीणों में काफी रोष है । 70 वर्षीय ग्रामीण शिवाधार सिंह ने बताय कि हाथ में फुल का डलिया लिए सभी इस आशा में प्रतिदिन मंदिर आते है कि किसी दिन कोई ना कोई मेरे आराध्य भगवान का जमानत जरूर ले लेगा । देखिये वो सौभाग्य इस जीवन में देखने को मिलता है या नहीं ..

ब्रिटिश डाक्यूमेंट्री में काम करने का ऑफऱ

अनिमेष नचिकेता
कौन बनेगा करोड़पति - 5 में पांच करोड़ रुपये जीतने वाले सुशील कुमार को ब्रिटिश डाक्यूमेंट्री में काम करने का ऑफऱ मिला है। मालूम हो कि सुशील के सितारे इन दिनों बुलंदियों पर हैं। ब्रिटेन के फिल्मकार क्रिस टैरेंट और कीथ स्ट्राचैन ने सुशील को अपनी डॉक्यूमेंट्री में काम करने का ऑफऱ दिया है, जिसकी शूटिंग ब्रिटेन में ही होगी। यह फिल्म सुशील की जिंदगी पर ही होगी, जिसमें दिखाया जायेगा कि कैसे एक पिछड़े गाँव का एक लड़का खाकपति से करोड़पति बन जाता है। सुशील इस प्रस्ताव से जहाँ उत्साहित हैं वहीँ थोडा नर्वस भी।
अब तक नहीं लिया है फैसला- हालाँकि, सुशील कुमार ने अब तक इस सम्बन्ध में कोई फैसला नहीं लिया है। लेकिन, जल्द ही सुशील इस ऑफऱ पर सोचेंगे। मालूम हो कि सुशील इन दिनों बहुत व्यस्त चल रहे हैं। इसी कारण से नववर्ष की पूर्व संध्या पर दिल्ली और मुंबई में होने वाले कार्यक्रमों में भी सुशील भाग नहीं ले सके थे। सुशील इन दिनों मोतिहारी में महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के लिए बन रही एक डाक्यूमेंट्री की शूटिंग में व्यस्त हैं। सुशील कुमार मनरेगा के ब्रांड एंबेसडर भी हैं।

नन्ही जादूगर कंचन प्रिया ने किया अचंभित

धनंजय मिश्र
कल तक घर की चौखट के अंदर रहने वाली बिहार की महिलायें सकारात्मक बदलाव की मुहिम में नया अध्याय जोड़ रही हैं। घर की दहलीज से बाहर निकल सामाजिक बदलाव के हर क्षेत्र में बुलंदियों पर परचम लहराने वाली इन महिलाओ ने हिन्दी साहित्य के उस मुहावरे को भी झुठला दिया, जिसके तहत चूड़ी पहन बैठ जाना, कामचोरी व कायरता का पर्याय माना जाता था। गांधीगीरी और अन्नागीरी के इस दौर में जब सरकारी बाबूओं को चूडिय़ां भेट करना आंदोलन का अंग बन गया है, वहां महिलाओं ने विरोधके इस प्रतीकात्मक तरीके पर पुर्नविचार करने को विवश कर दिया है।
कराया चूड़ी की ताकत का अहसास - अपनी कोशिशों से समाज को बदल डालने का जज्बा रखने वाली महिलाओं ने चूड़ी की ताकत का अहसास कराया है। मुजफरपुर की किसान चाची हो या हनी गर्ल अनीता या फिर वेश्याओं के जीवन में बदलाव के लिये संघर्षरत नसीमा या फिर बिहार की पहली महिला जादूगर कंचन प्रिया, लोक - संस्कृति को सहेजने में जुटी अनीता भी। इस पिछडे प्रदेश की ये महिलायें अब ऑइकन बन चुकी हैं. बिहार के मेहनतकश किसानों के लिए किसान चाची प्रेरणास्रोत बन चुकी हैं। उनकी कृति का डंका सिर्फ बिहार में ही नहीं बल्कि सरहद पार भी बज चुका है। गांव की पगडंडियों पर साईकिल चलाकर किसानों को खेती की नई गुर सिखाने वाली 65 वर्षीय राजकुमारी देवी को महिला सशक्तिकरण का उदाहरण माना जाता है। हनी गर्ल अनीता पर यूनेस्को ने फिल्म तक बना डाली। विश्व खाद्य दिवस पर उसे महिला मॉडल किसान की उपाधि से समानित किया गया।
छोटी सी उम्र में अनीता के बड़े कारनामे - छोटी सी उम्र में ही संघर्ष ने अनीता को वह मुकाम दिया कि कारपोरेट जगत में भी वह छा गई। रेड लाईट एरिया के वेश्याओं की अंधेरी गलियों से बाहर निकल कर ज्ञान की रोशनी फैलाने में नसीमा का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। सूबे के 25 जिलो के 50 रेडलाईट एरिया की महिलाओं व बच्चों की स्थिति के आकलन के लिये सी वोटर्स के सहयोग से सर्वेक्षण कार्य पूरा किया जा चुका है।
नन्ही जादूगर कंचन प्रिया ने किया अचंभित - मुजफ्फरपुर के सकरा प्रखंड के सुस्ता मोहमदपुर कि नन्हीं सी जादूगर कंचन प्रिया ने अपनी हाथ की अंगुलियों के इशारे पर बडे-बडे ककरामात से लोगों को अचभिँत कर दिया है। गांव की पगड़डियों से होकर चली उसके संघर्ष की कहानी और उससे मिलने वाली कामयाबी हाईटेक हो गयी है। पिता एक साधारण राज मिस्त्री थे। बचपन से लोकगीत सुनने में अभिरूचि रखने वाली कंचन अपने एक रिश्तेदार से जादूई कला में पारंगत हुई। काफी कम समय में इस नन्हीं सी बालिका ने जादूगरी के क्षेत्र में कई नये आयाम गढे और देश के कई मंचों पर अपना लोहा मनवाया। सिनेमा व टीवी के इस दौर में जब जादूगरी के प्रति लोगों का रूझान कम पड़ गया है, ऐसी परिस्थिति में भी कंचन प्रिया ने एक से बढ़ एक करतब दिखा लोगों का दिल जीत लिया है।

शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

जरा देखिये इस तस्वीर को

जरा देखिये इस तस्वीर को. इस उम्र में भी अपने हाथ में राईफल रखकर ज़ुल्म से लड़ने को तैयार हैं ये बूढ़े हाथ. जी हाँ सही पहचाना आपने, ये बुजुर्गवार महिला ही हैं. इनके अन्दर भी ज़ज्बा है मर्दों के साथ कंधे से कन्धा मिलकर चलने की, मर्दों के समकक्ष अपने आप को खड़ा करने की. लेकिन कुछ महिलाएं/लडकियां अपने आपको मर्दों/लड़कों के समक्ष खड़ा करने के लिए अपने मूंह में सिगरेट सुलगाती हैं और शराब की बोतलें लुढ्काती हैं या अंततः नशे में चूर होकर राह में कहीं लुढकी हुयी मिल जाती हैं. इनके लिए समकक्षता के लिए नकारात्मक चीजों के साथ प्रतियोगिता ही समकक्षता की परिभाषा बन जाती है. सकारात्मकता से ना तो ऐसे लोगों का वास्ता होता है और ना ही मतलब. वही कुछ महिलाएं/लडकियां जो पुरुष-प्रधान समाज में अपनी पहचान बनाने को अग्रसर हैं वो नौकरी, बिजनेस करती हैं और अपनी पहुँच इन दोनों चीजों में यहाँ तक पहुंचा चुकी हैं जहाँ पर पुरुषों का ही वर्चस्व था. अगर देखा जाए तो अपने आप को पुरुषों के समकक्ष ही इन्होने नहीं खड़ा किया है बल्कि पुरुषों के आदर्श के रूप में भी सामने आई हैं. यही कारण है की इस देश में रानी लक्ष्मी बाई हुयीं, सरोजनी नायडू हुईं, कल्पना चावला जैसी और भी अनगिनत महिलाएं हुईं जिन्होंने पुरुष-प्रधान समाज में अपनी एक अलग पहचान बनायी.काश ! मूंह में सिगरेट सुलगा कर धुएं के छल्ले बनाने वाली, बीअर बार के किसी कोने में लुढकी, राह चलते किसी किनारे नशे के हालत में गिरी-पड़ी या अपने पहचान के लिए अपने जिस्म की नुमाईश करने वाली लडकियां/महिलाएं भी समझ पाती की 'पहचान' की परिभाषा क्या होती है और 'समकक्षता' का सही मतलब क्या होता है.
- राज कामल

खूबसुरत बनाना है बिहार को : डा राजीव सिन्हा

उनका सपना खुबसूरत बिहार बनाने का है। इसके लिये वे हरसंभव प्रयास भी कर रहे हैं। बिना यह आकलन किये कि उनके प्रयास का फ़ल क्या होगा, बिल्कुल वैसे ही जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में कहा है। हम जिनकी बात कर रहे हैं उनका नाम डा राजीव सिन्हा है। ये मूल रुप से बिहार के हैं और वर्तमान में आस्ट्रेलियाई शहर ब्रिसबेन के ग्रीफ़िथ युनिवर्सिटी में कृषि विज्ञान के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं। जैविक खेती को लेकर इनकी ख्याति पूरी दुनिया में है। इसका अनुमान इसी मात्र से लगाया जा सकता है कि इनके अनुरोध पर एग्रो केमिकल कंपनियों के दबाव के बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने देश में वर्मी कम्पोस्ट के औद्योगिक उत्पादन को हरी झंडी दी। डा सिन्हा की विशेषज्ञता का उपयोग आस्ट्रेलियाई सरकार ने भी जनहित में किया है। विशेषकर इनके द्वारा इजाद की गई अर्थवर्म तकनीक पर आधारित सीवरेज प्लांट का उपयोग अब चिली और मैकिस्को आदि देशों में भी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। भारत में गुजरात के भावनगर शहर में सरकार ने डा सिन्हा के अनुभवों का भरपूर उपयोग करते हुए वाटर मैनेजमेंट एंड प्यूरीफ़िकेशन सिस्टम को सजीव किया है। डा सिन्हा वर्तमान में पटना में छुट्टियां मनाने आये हैं। इस दौरान इन्होंने “अपना बिहार” के साथ विशेष बातचीत की। डा सिन्हा ने बताया कि आज पूरे विश्व में जैविक खेती ही एक मात्र विकल्प रह गया है। खेती में खतरनाक रसायनों के उपयोग का हश्र पूरी दुनिया देख चुकी है। अभी हाल ही में अमेरिकी सरकार द्वारा कराये गये सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया है कि केवल रसायनिक ऊर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग के कारण अमेरिका में करीब 20 हजार लोग हर साल बेमौत मर जाते हैं। यही स्थिति पूरे विश्व की है। डा सिन्हा बताते हैं कि केंचुआ असल में मानव जीवन के लिये वरदान है। अब तो विश्व के कई हिस्सों में यह समेकित खेती के लिये सबसे अधिक उपयोगी साबित हो रहा है। मसलन अस्ट्रेलिया में लोग वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने से लेकर गायों के चारे के रुप में भी केंचुआ का इस्तेमाल करते हैं। डा सिन्हा बताते हैं कि केंचुआ के शरीर में एंटी आक्सीडेंट तत्वों की प्रचुरता के अलावे पौष्टिकता के सारे तत्व मौजूद हैं और इनके खाने से गायें अधिक दूध एवं अधिक पौष्टिक दूध देती हैं। भारत में धर्म संबंधी मान्यताओं के वजह से यह संभव नहीं है तब भी पाल्ट्री के क्षेत्र में केंचुओं का इस्तेमाल किया जा सकता है। डा सिन्हा ने बताया कि केंचुआ केवल वर्मी कम्पोस्ट ही नहीं बनाता है, बल्कि इसका उपयोग पानी के शोधन के लिये भी किया जा सकता है। बिहार में यदि इस तकनीक पर जल शोधन इकाइयों की स्थापना हो तो निश्चित तौर पर गंगा के प्रदूषण पर नियंत्रण पाने में सफ़लता मिलेगी। इसका एक लाभ यह भी होगा कि बड़े पैमाने पर किसानों को जैविक खाद की आपूर्ति की जा सकेगी। बहरहाल, डा सिन्हा चाहते हैं पूरी दुनिया में प्रशंसित उनका यह तकनीक बिहार में भी अमल में लाया जाये, ताकि बिहार में सही मायनों में हरित क्रांति हो सके। लेकिन इन्हें अफ़सोस है कि इनके द्वारा इस संबंध में बिहार के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और कृषि मंत्री को भेजे गये अनेकों ईमेल का आजतक कोई जवाब नहीं मिल सका है। डा सिन्हा चाहते हैं कि यदि बिहार सरकार उनके इस तकनीक को देखना चाहती है तो उसे अपने विशेषज्ञों को दुनिया के उन हिस्सों में भेजना चाहिये जहां लोग उनकी इस तकनीक का लाभ उठा रहे हैं।

जीनत की आंखों में सजीव है नेताजी के भारत का सपना

वह 23 जनवरी 1944 का दिन था, जब आजाद हिंद फ़ौज की एक टुकड़ी ने भारतीय सीमा में प्रवेश किया। इस टुकड़ी के नायक ने भारतीय सीमा में घुसने के साथ ही आजाद हिंद फ़ौज का तिरंगा फ़हराया था। बाद में लड़ाई के दौरान वह नायक और उसकी दल के सभी सदस्य अंग्रेज सैनिकों द्वारा गिरफ़्तार कर लिये गये। दल के उस नायक को फ़ांसी की सजा सुना दी गई। लेकिन इससे पहले कि उन्हें फ़ांसी दी जाती, भारत आजाद हो गया और उन्हें रिहा कर दिया गया।

देश के लिये अपनी जान तक न्यौच्छावर करने वाले कर्नल महमूद अहमद आज दुनिया में नहीं हैं। उन्होंने जो सपना देखा था, वह आज भी उनकी पत्नी जीनत महमूद अहमद की आंखों में सजीव है। “अपना बिहार” के साथ विशेष बातचीत में श्रीमती अहमद ने बताया कि उनकी अपनी पैदाइश जम्मू में हुई थी। उनके पिता वजाहत हुसैन अपने समय में बिहार के गिने-चुने आईसीएस यानी इन्डियन सिविल सर्विस के अधिकारी थे। वे जम्मू कश्मीर में कार्यरत थे। बाद में उनका स्थानांतरण यूपी में कर दिया गया। वर्ष 1935 में आजादी के दीवानों ने गोरखपुर में विशाल जनसभा का आयोजन किया था। अंग्रेजी हुकूमत ने वजाहत हुसैन को जनसभा में गोली चलवाने का हुक्म दे दिया। इससे इन्कार करते हुए उन्होंने अंग्रेजों की नौकरी त्याग दी। बाद में वे भारतीय रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर सी वी देशमुख ने उन्हें डिप्टी गवर्नर बना दिया और इस प्रकार उनका परिवार बंबई चला गया।हम जिनकी बात कर रहे हैं, वह थे कर्नल महबूब अहमद। नेताजी सुभाषचंद्र बोस के सबसे निकट रहने वाले कर्नल अहमद बिहार के वैशाली जिले के दाऊदनगर के रहनेवाले थे। आजाद हिंद फ़ौज में शामिल होने से पहले वे ब्रिटिश सेना में कर्नल थे। जब नेताजी ने भारतीय सैनिकों को देश सेवा में आगे आने का आहवान किया तो कर्नल अहमद ने आगे बढकर ब्रिटिश सेना की नौकरी छोड़ दी और नेताजी के साथ हो गये। श्रीमती अहमद ने बताया कि उनकी मां सईदा भारत के अंतिम हिन्दू शासक पृथ्वीराज चौहान से था। ऐसा इसलिये कि पृथ्वीराज चौहान के खानदान के लोगों ने बाद में इस्लाम कबूल कर दिया था और पंजाब के बटाला में रहने लगे थे। कर्नल महबूब अहमद के साथ शादी के संबंध में पूछे गये सवाल पर श्रीमती अहमद ने बताया कि उस समय वे दिल्ली के मिरांडा हाऊस में एमए की प्रथम वर्ष की छात्रा थीं। शादी के समय उनकी उम्र 22 वर्ष और कर्नल अहमद की उम्र 37 वर्ष थी। कर्नल महबूब उस समय देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरु के अत्यंत करीब थे और उनके कहने पर ही उन्होंने भारतीय विदेश सेवा की नौकरी स्वीकार की।

उम्र में इतना अंतर होने के बावजूद दोनों के दांपत्य जीवन में कोई अंतर नहीं है। श्रीमती अहमद ने बताया कि कर्नल अहमद बाहर से जितने अनुशासित और साहसी थे, अंदर से उतने ही कोमल हृदय के स्वामी थे। बिहार के प्रति लगाव का उल्लेख करते हुए इन्होंने बताया कि आजादी मिलने के बाद जब कर्नल अहमद जेल से रिहा हुए तो सबसे पहले वे पटना आये। करीब दो वर्षों तक वैशाली स्थित अपने पैतृक गांव और पटना में रहने के बाद पंडित जी के कहने पर उन्होंने भारतीय विदेश सेवा की नौकरी को स्वीकार किया। भारतीय राजनयिक के रुप में दुनिया के एक दर्जन देशों में रहने के बाद जब वे सेवानिवृत हुए तब उन्होंने दिल्ली अथवा किसी अन्य बड़े शहर में रहने के बजाय पटना में रहना स्वीकार किया। बहरहाल, श्रीमती अहमद कहती हैं कि आज भारत विकास के रास्ते पर अग्रसर है। लेकिन राष्ट्रीयता नहीं है। आज पूरा देश अलग-अलग राज्यों में बंटता चला जा रहा है। कोई बिहार की बात करता है तो कोई गुजरात की। कोई केवल भारत की बात क्यों नहीं करता। जबकि मूल आवश्यकता इसी बात की है। जबतक एक राष्ट्र की अवधारणा साकार नहीं होगी, तबतक देश में विकास के नाम पर केवल पाखंड चलेगा। हालांकि इन्हें विश्वास है कि वह समय भी आयेगा जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस और कर्नल महबूब अहमद की आंखों में बसा “भारत” का सपना साकार होगा।

मंगलवार, 3 जनवरी 2012

अनोखी तस्वीर

ये चित्र जो देख रहे हैं वह कुछ देर के लिए आपको आश्चर्च्कित कर देगा... लेकिन यह सही है... घर से में जब अपने ऑफिस के लिए आ रहा था... तो एनएच ६ (भिलाई) ट्रक पर ट्रेन का इंजन का डब्बा लोड होकर जा रहा था... उस दोरान पत्रिका के फोटोग्राफ गणेश निषाद ने अपने कैमरे में इस तस्वीर को कैद कर लिया....

राहुल की चिट्ठी सोनिया को

मम्मी, मम्मी, अब तो आजा, तेरी याद सताती है, जनता अब समझ गयी है, अब नहीं धोखा खाती है, प्रणब न्यूट्रल हो गया है, और गायब है दिग्गी चाचा, चाचू यदि बाहर आयेंगे तो, खायेंगे वो खूब तमाचा, चिदंबरम को सांप सूंघ गया, मनमोहन तो गूंगा है, मनीष तिवारी अंडर ग्राउंड, जनता का गुस्सा सुंघा है, राशिद अल्वी सकते में है, फेल हो गया सिब्बल की चाल, मनु सिंधवी तो गीदड़ है, बस पहन रखा था शेर की खाल, मम्मी आपने फंसा दिया, बोलो मै अब जाऊं कहाँ, कोई सुरक्षित जगंह बताओ, बैठा रहूँगा चुपचाप वहां, सोच रहा हूँ, इटली जाऊं , कुछ दिन ऐशो-आराम करूँ, थोडा काला धन निकाल कर, नाना-संग विश्राम करूँ, आप यूएस से सीधे आना, खतरा है भारत देश में, कृष्ण का अवतार आया है, बूढ़े अन्ना के वेश में, जो कंस रूपी कांग्रेस का, एक दिन वो वध करेगा, लोकपाल ला करके, गरीब जनता का दुःख हरेगा, आते वक़्त स्विस बैंक से, सारे पैसे निकाल लाना, बाकी बैंको के नंबर भी, जल्दी से मुझे बताना, दिन में जन-सैलाब देख कर, रात को नींद न आती है, इन्टरनेट पर गाली खाकर, भूख मेरी मिट जाती है, मम्मी, मम्मी, अब तो आजा तेरी याद सताती है, जनता अब समझ गयी है, अब नहीं धोखा खाती है|
- विनोद कुमार

बदला हुआ मंजर

छठ पर्व का समय था मैं अकस्मात ही मिथिला में स्तिथ अपने गाँव श् ब्रहमपुराश् पहुँच गया था, चार दिन चलने वाला यह पर्व पूरे बिहार ए पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में अगाध श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है द्यलगभग १० बरसो से मैंने अपने गाँव का छठ पूजा नहीं देखा था द्य इस पूजा को लेकर पूरे गाँव में उत्साह का वातावरण था द्य उसी दौरान मुझे गाँव के एक भोज में शामिल होने का अवसर भी मिला द्य पार्टियों से थोडा भिन्न होता है द्य गाँव के भोज में छोटे बड़े सभी को पुआल की बीड़ी ; पुआल की छोटी गठरी द्ध पे निचे बैठ कर खाना होता है द्य पानी पिने के लिए सभी अपने घर से ग्लास या लोटा लेकर आते हैं द्य पहले गैस की लाइट जिसे फनिस्वर नाथ रेनू जी ने ष् पञ्च लाइट कहा था ए का इस्तेमाल रौशनी के लिए किया जाता था की व्यवस्था देखि जा सकती है, मैं भी अपने गाँव के भाई ए काका और दादा जी सब के साथ पुआल की बीड़ी पे बैठ गया द्य एक के बाद एक पकवान आते गए द्य एक ही पत्तल पर सारे पकवान को सम्भाल पाना भी अपने आप में एक कला है द्य यहाँ लोग शहरों की तरह चख चख कर नहीं खाते ए गप्पा गप खाते हैं द्य भोजन परोसने वाला सह्रदय आग्रह करता है और कोशिश करता है की खाने वाला शर्म और हिचकिचाहट छोड़ जम कर भोजन का लुफ्त उठाएं द्य खाने के दौरान हंसी मजाक ए टिका टिपणी भी चलते रहते है द्य पूर्व के किसी भोज की भी चर्चा छेड़ दी जाती है और लोग अपने अनुभव बढ़ चढ़ कर बताने लगते हैं द्य इन्ही सब चीजो के बीच लोग अपने खुराक से कुछ जाएदा ही खा लेते हैं द्य मैं भी बातों का आनंद उठाते उठाते अपने नियमित खुराक से जाएदा खा चूका था द्यपर मुझे इस भोज में खाने का जायका उतना उम्दा न लगा जितना उम्दा पहले कभी हुआ करता था द्य पूछने पर पता चला की भोजन बनाने के लिए भाड़े के हलुवाई आयए थे द्यमुझे यह सुनकर आश्चर्य हुआ द्य यह गाँव के तरीके से थोड़ा भिन्न था द्य गाँव में भोज की तैयारी गाँव के लोग ही आपसी मेल मिलाप और समझ बुझ से कर लेते हैं द्य कोई सब्जी बनाने में माहिर तो कोई दाल तो कोई दुसरे पकवान में द्य पकवान बनाने का उनका तरीका भी हट कर होता है द्य मिटटी खोद कर चुल्हा बनाया जाता हैद्य खाना बनाने से पहले चूल्हे का विधिवत पूजा भी किया जाता है द्य उसके बाद लकड़ी की सोंधी आंच पर खाना तैयार होता है द्य खाने का स्वाद और उसकी खुशबू लाजवाब होती है द्य लकड़ी की जगह अब गैस चूल्हे का इस्तेमाल होने लगा है द्य पारंपरिक ढंग से भोजन बनाने वाले लोगो की कमी हो गयी है द्य और कमी हो गयी है पसी प्रेम और मैत्री की द्य लोग छठ में ट्रेनों में ठस्म ठस भर कर गाँव ४.५ दिनों के लिए आते हैं द्य ३ महीने पहले भी ट्रेन में आरक्षण मिलना किसी गोल्ड मेडल से कम नहीं है द्य गाँव के लोग भी इस पर्व का पूरे साल इंतज़ार करते हैं की अपने और पड़ोस के घरों में शहरों से इनके अपने आयेंगे द्य दादी को पोता पोती के लिए पकवान बनाने का मौका मिलता है द्य दादा जी उन्हें कंधे पर बैठा पूरे गाँव में घुमाते हैं और अपने खेत खलियान दिखाते हैं द्य सारी करवाहट और शिकायत को किनारे कर वो इस ४.५ दिन एक अलग दुनिया में खो जाते हैं द्य शहर से आयए लोग नए कपड़े पहनते हैंए नए चमकदार मोबाइल और कैमरे दिखाते गाँव में घूमते हैं द्य गाँव के लोग उन्हें कोतुहल भरी नज़रों से देखते हैं और आह भरते हैं की वो कब शहर जायेंगे द्य शहरों के तरफ पलायन का आलम ये है की २०.४० साल की उम्र का शायद ही कोई नवयुवक आज गाँव में रुका हो , जिसे जहाँ मौका मिला वो उधर ही निकल गयाद्य रह गए हैं तो बूढ़े ए औरतें और बच्चें जिनके पिता की आमदनी बहुत जाएदा नहीं है द्य पलायन वैसे तो हर वर्ग में है पर ऊँची जाती ए हिन्दू हो या मुसलमान ए में सबसे जाएदा है परिस्थितियाँ कुछ बदली जरुर हैं द्य गाँव में अब ६.७ घंटे जली रहती है द्य फुश की झोपरियों की जगह पक्के के मकान खड़े हो गए हैं द्य सुबह सुबह बच्चे पोशाक पेहेन कर स्कूल जाते दिख जाते हैं द्य मजबूत सड़को पर गाड़ियाँ सायें सायें करते निकल जाती हैं द्य फिर भी गाँव अपने मजबूत कंधो वाले बेटों की राह देख रही है ने अपने नह्ने नह्ने कदमो से गाँव की धुल भरी गलियों में दौड़ लगायी थी द्य जिन्होंने गाँव के तालाबों और पोखरों के घाट पर बने चबूतरों से पानी में लम्बी छलांग लगायी थी द्य वो गाँव का मंदिर उनकी राह देख रहा है जिनकी घंटी बजाने के लिए वह अपने दादा जी के कंधे पर चढ़ जाया करते थे द्यआज भले ही उस मंदिर की दीवार थोड़ी ढेह गयी है द्य जिन आम के पेड़ो पे उन्होंने गुलेल चलाई थी वो पेड़ आज भी इस गाँव में हैं द्यहाँ थोडा बुड्ढा हो चला है पर नए पत्तो और नए फलों के साथ आज भी वो उनका इंतज़ार कर रहा है
- कुणाल